Wednesday 26 September 2012

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अपनों से भी इतना तकल्लुफ, ऐसी भी क्या दुनियादारी
वक़्त पड़े तो आजमा लेना, तब दुनिया भी देखेगी यारी |
----------------------विशाल

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दोबारा जोड़ भले लो पर ज्यादा दिन नहीं चलता,
कपड़ा हो या कि रिश्ता, पैबंद उखड़ ही जाती है|
-------------------विशाल

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क्या अच्छा होता कि सब का सब कुछ होता,
ना कुछ तेरा होता और ना कुछ मेरा होता|
इन रोशनियों ने तो तहजीब ही मिटाकर रख दी,
इससे तो बेहतर था कि हर तरफ अंधेरा होता।

-विशाल
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Tuesday 25 September 2012


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कोई खुदा नहीं कोई बशर नहीं,
मेरा अपना अब कोई दर नहीं |
किसी और से क्यों करूँ गिला,
जब मुझे ही मेरी खबर नहीं |

-विशाल

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जो उम्र भर मेरी छाँव में ही फूला फला है ,
आज मेरी उम्र हो गयी तो काटने चला है |
मैं अपने आपको अपनों से कैसे बचाऊँ,
मेरे लिए तो अब यही सबसे बड़ा मसला है |

-विशाल
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~

मैं अपने हालात उसको बताता भी तो कैसे,
इस हाल में उसके घर जाता भी तो कैसे |
अन्दर तो मेरे दर्द है, गम है और तन्हाई है,
उसे देखकर भला मुस्कराता भी तो कैसे |
इस भरी दुनिया में मेरा दिल रीता ही रहा,
मैं किसी पर प्यार लुटाता भी तो कैसे |
जो खुद वक़्त के हाथों सताया हुआ बशर है,
वो भला किसी और को सताता भी तो कैसे |
वो रोज किश्तों पर जीता है इस जहाँ में,
उसे गुजरा वक़्त याद आता भी तो कैसे |
ना वो ताख रहे अब और ना ही वो रोशनदान,
परिंदा अपना घोसला बनाता भी तो कैसे |
उसकी जिन्दगी तारीकों की ही एक कहानी है,
वो उम्मीदों के 'चिराग' जलाता भी तो कैसे |

-विशाल



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पहले मुझे तारा कहता है और फिर ही मेरे टूट जाने की दुआ करता है,
यहाँ कौन अपना कह के मार दे खंजर, दिल इसी बात से तो डरता है |

-विशाल
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++

जो कभी ना पूरे होंगे, वो ख्वाब सजाता क्यों है
अपने आप को इस तरह से बहलाता क्यों है |
तेरे जख्मों की खबर शायद किसी को नहीं,
फिर चोट खाकर तू हमेशा मुस्कराता क्यों है |
वो आकर लौट जाता है कुछ कहे बिना चुपचाप,
मैं समझता ही नहीं, फिर वो यहाँ आता क्यों है|
तेरे दर पर ये बड़ी उम्मीद से आये होंगे,
बेबात इन परिंदों को इस तरह से उडाता क्यों है |
तेरी दिल में क्या है, ये तू ही जाने है मौला,
कश्ती कभी डुबाता तो कभी उतराता क्यों है |
गर मिटा दिया है अपनी यादों से उसको तूने,
फिर उसके नाम का 'चिराग' जलाता क्यों है |
-विशाल


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ना ही खोटा हूँ और ना ही मैं खरा हूँ,
बस आज के हालात का तफसरा हूँ |
किस हाल में हूँ, मुझे खुद को नहीं मालूम,
ना तो जिन्दा हूँ और ना ही मैं मरा हूँ |

-विशाल
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जब साथ चलते हों हमारे यकीं महकम और अमल पैहम
तब भला वो हालात कहाँ जो हो हमें किसी बात का गम |

-विशाल

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क्या था मेरा गुनाह जो सजा मिली मुझको,
रात और दिन ये सवाल मुझको सताएगा |
जानता हूँ कि वो भी भुला नहीं पायेगा मुझको,
बार बार लिखेगा मेरा नाम और फिर मिटाएगा |
जिक्र मेरा कभी करे, ना करे अपनी बातों में,
पर मेरा ख्याल तो उसे भी बार बार आएगा |
क्या सच में अब मुझसे दूर चला जाएगा वो,
दिल तो कहता है कि लौट के फिर से आएगा |
इसी उम्मीद पर अब तलक जिन्दा हूँ मैं, वरना
साथ गुजारा था जो वक़्त बहुत तड़पायेगा |
जिस तरह टूट कर चाहा था उसने मुझको,
कौन भला अब उस शिद्दत से मुझे चाहेगा |
कल को जब रुखसत हो जाऊंगा इस जहाँ से,
कौन बैठा है यहाँ जो मेरे लिए अश्क बहायेगा |
इन ग़मों को कब तक अपने सीने में पालेगा,
जो तू हँसेगा तो फिर जमाना भी मुस्कराएगा |
अंधेरों से लड़ना तो अपना शगल रहा है 'चिराग',
दुनिया को रोशन करने खुद ही को जलाएगा |

-विशाल

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कल तलक जिसके लिए सब कुछ हुआ करता था मैं,
आज मुझको क़त्ल करने का बहाना उसको चाहिए |
जो कभी करता दुआ था दिन रात मेरे साथ की,
आज कहता है कि अब मर जाना तुमको चाहिए |
-------------------विशाल
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

ये इक जंग है, इसमें बहुत कुछ खोना पड़ेगा,
पत्थर से टकराना है तो पत्थर होना पड़ेगा|
किसी को भी तूने कभी अपना ना बनाया,
आज नहीं तो कल तुझको यहाँ रोना पड़ेगा|
यूँ तो नींद से तोड़ चुके हैं हम रिश्ता कभी का,
ख्वाब देखने हैं गर, तो कुछ और सोना पड़ेगा|
कुछ बातें रस्मन यहाँ हमें करनी ही पड़ती हैं,
आँखें नम करनी होंगी और गाल भिगोना पड़ेगा|
जिनसे मैंने हमेशा ही खुद को दूर बनाये रखा,
शायद अब उनमें ही मुझे शामिल होना पड़ेगा|

-विशाल

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हाँ, ये सच है कि मैं अक्सर गलतियाँ कर देता हूँ पहचानने में लोगों को,
जमाना गुजर गया, अब तक मैं खुद को ही पूरी तरह कहाँ जान पाया हूँ|

-विशाल
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तुमको ये शिकायत है कि मैं कुछ नहीं कहता,
मेरी ख़ामोशी भी मेरी आवाज है, गर सुन पाओ ।

-विशाल
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~

इस तरह ना ठुकरा मुझको, मैं किधर जाऊँगा,
राह-ए-सफर में अकेला रहा तो डर जाऊँगा |
अपनी मुट्ठी में ही कैद रहने दे तू मुझको,
वरना खुशबू हूँ, हवाओं में बिखर जाऊँगा |
तेरा होने का अहसास ही मेरे वजूद का वायस है,
छोड़ ना देना तू, तड़प तड़प कर मर जाऊँगा |
मैंने मुस्तकबिल को माझी के हवाले छोड़ा,
गर वो चाहेगा तो हर हाल में तर जाऊँगा |
हाँ, मैं पत्थर हूँ, कब इनकार किया है मैंने,
तुझमें सलीका है तो मैं भी संवर जाऊँगा |
बरसों बीत गए हैं गाँव का आँगन छूटे,
अबके बरस मैं हर हाल में घर जाऊँगा |
मेरे अन्दर एक आग सी रहती है 'चिराग',
देख लेना एक दिन मैं भी कुछ कर जाऊँगा |

-विशाल

बदलते वक़्त में अब ये आलम हुआ,
मेरा निगहबाँ ही मेरा दुश्मन हुआ |
अपनों के ही हाथों में अब खंजर है,
जाने सच है या मुझको भरम हुआ|

-विशाल

ना हो परिंदों का ठिकाना, वो कोई शजर है क्या,
जिसमें अपनापन ना हो, वो मकाँ घर है क्या?
अरसा बीत गया, उसे महफ़िल से रुखसत हुए,
कोई बताये तो जरा, उसकी कोई खबर है क्या?
उसका हौसला देख आकाश भी सर झुका लेता है,
परवाज देख उसकी, ये ना पूछ कि पर है क्या?
रस्ते में उसका साथ न हो, हाथों में हाथ ना हो,
मंजिल मिल भी जाये पर ये कोई सफ़र है क्या?
मेरे दिल तक तो तेरी हर आहट की खबर आती है,
तेरे दिल तक भी मेरे ख़्वाबों की डगर है क्या?

-विशाल

अफसाना ख़त्म हुआ पर गर्द औ गुबार बाकी है,
उन उदास आँखों में अब भी कुछ प्यार बाकी है|
ख्वाब तो कब के हो गए हैं सारे ही चूर चूर,
अब तो बस एक झूठा सा खुमार बाकी है|
बड़ी शिद्दत से जोड़ा था टूटा हुआ रिश्ता मैंने,
पर अभी भी एक रह गयी दरार बाकी है|
यूँ तो अरसा हुआ हमें रहते साथ साथ,
पर बीच में अब भी अना की दीवार बाकी है|
लफ्जों के नश्तर तो वो चलाता है रोज रोज,
अब तो भोंकने को बस कटार बाकी है|
इस मुकाम पर आकर भी मैं हूँ खाली हाथ,
पास कुछ भी नहीं, बस इन्तजार बाकी है|
अब भी कर सकता है रोशन तू किसी का दर 'चिराग',
अब भी तुझमें वो अंगार बाकी है|

-विशाल

शहर के बाशिन्दों ने अब तलक गाँव नहीं देखे,
मुझे बद्दुआ देने वाले तूने मेरे घाव नहीं देखे |
लक्ष्मण ने कभी चेहरा नहीं देखा था सीता का,
और अब के देवरों ने कभी पाँव नहीं देखे |
मैं दुश्मनों से बचने में लगा रह गया उम्र भर,
कभी दोस्तों के छल कपट और दाँव नहीं देखे |

-विशाल

मैं आज भी वही हूँ जो कल तक लगता था तुम्हें,
बस मुझे देखने का नजरिया बदल लिया है तुमने |

-विशाल

 वो गम अब फिर से उभर आया है, जो बरसों से सीने में पला था
वहीँ आकर खड़ा हो गया हूँ मैं, जहाँ से बरसों पहले चला था|
ना जाने क्यों उसको ढूंढने की हर कोशिश नाकाम रही है मेरी,
जो शख्स खुद का वजूद भुला हर लम्हा मुझमे ही ढला था|

-विशाल

Wednesday 12 September 2012

क्या था मेरा गुनाह जो सजा मिली मुझको,
रात और दिन ये सवाल मुझको सताएगा ।
जानता  हूँ कि वो भुला नहीं पायेगा मुझको,
बार बार लिखेगा मेरा नाम और फिर मिटाएगा ।
जिक्र मेरा कभी करे, ना करे अपनी बातों में,
पर मेरा ख्याल तो उसे भी बार बार आएगा ।
क्या सच में अब मुझसे दूर चला जायेगा वो,
दिल तो कहता है कि लौट के फिर से आएगा ।
इसी उम्मीद पर अब तलक जिन्दा हूँ मैं, वरना 
साथ गुजरा था जो वक़्त बहुत तड्पाएगा ।
जिस तरह टूट कर चाहा था उसने मुझको,
कौन भला अब उस शिद्दत से मुझे चाहेगा ।
कल को जब रुखसत हो जाऊंगा इस जहाँ से,
कौन बैठा है यहाँ जो मेरे लिए अश्क बहायेगा ।
इन ग़मों को कब तक अपने सीने में पालेगा,
जो तू हँसेगा तो जमाना भी मुस्कराएगा ।
अंधेरों से लड़ना तो अपना शगल रहा है 'चिराग',
दुनिया को रोशन करने खुद ही को जलाएगा ।
------------------विशाल







किताबों में बहुत खूबसूरत लगते हैं जो अफ़साने,
हकीकत में तो वो किस्से बहुत बदरंग होते हैं ।
जो दम भरते हैं कि चलेंगे साथ रात दिन अपने,
जरुरत आन पड़ती है तो कहाँ पर संग होते हैं ।
--------------------विशाल













कुछ तो हुआ है, कहीं कोई तारा टूटा क्या,
किसी बेबस दुखिया का सहारा टूटा क्या ।
आज तो फिर से आसमान भी रो पड़ा है,
कहीं पर कोई वक़्त का मारा टूटा क्या ।
अब कभी न बज सकेगी वो धुन जीवन में,
कभी बज सका है यहाँ इकतारा टूटा क्या ।
-----------------विशाल

Tuesday 14 August 2012


दरिन्दे को तो क़त्ल औ गारद की खबर चाहिए,
वो तेरा हो कि मेरा हो, उसे तो बस सर चाहिए |
साँपों को बस्ती में देख पूछ बैठा आने का सबब,
मुस्कराकर बोले आप लोगों से थोडा जहर चाहिए|
चाँद सितारों जैसे वादे, नहीं हैं उनके किसी काम के,
भूखों को रोटी और बेघरों को एक अदद घर चाहिए|
भले ही दूर तक निकल जाते हैं आबोदाने के लिए ,
लौट कर परिंदों को फिर वही अपना शजर चाहिए|
औरों के लिए जीने वाले कहाँ हैं अब, आ ढूंढें जरा
एक दो नहीं, इस तरह के हजारों बशर चाहिए|
पल दो पल का साथ अब देता नहीं सुकून-ए-दिल,
साथ उसका अब मुझे हर हाल में उम्र भर चहिये|
---------------------विशाल

बशर---------इंसान
शजर--------पेड़

अजब रस्म है दुनिया की, कोई खुश तो कोई नाशाद होता है,
जब कोई चमन उजड़ता है तो कोई कफस आबाद होता है|
---------------------विशाल

हर बार ना जाने क्यों, मैं ही नाकाम रह गया,
शायद अभी दुनिया के दस्तूर आते नहीं मुझको|
--------------------विशाल

सबकी अर्थियां को घरों से निकलते देखा है मैंने,
पर मैं रोज अपना जनाजा लेकर घर जाता हूँ|
जब देखता हूँ वहां सूनी आँखों को राह तकते,
हर बार और थोडा सा मर जाता हूँ |
----------------विशाल

कभी पाया उसको खूबसूरत कँवल की तरह,
कभी लगती रही मुझको वो ग़ज़ल की तरह |
अरसा हुआ उसके दीदार को तरसते रहे हम,
कभी उतरेंगे उसके आँगन में बादल की तरह |
वैसे किसी के रहने की गुंजाइश ही कहाँ इसमें,
ये दिल मेरा है एक सुनसान मरुस्थल की तरह |
किसी वहशी की हवस की सजा भला उसको क्यों,
मेरी नज़रों में वो अब भी पाक है गंगाजल की तरह |
ऊपर से सख्त पर भीतर से बेहद नरम ,
पिता हमेशा ही होते हैं नारियल की तरह |
ये वो जगह है जहाँ गधे रेंकते हैं हमारे पैसों पर,
संसद लगती है मुझको किसी अस्तबल की तरह|
अब सहा नहीं जाता हमसे कठपुतली का राज,
काश कोई फिर से आ जाता अटल की तरह|
इसमें कूदोगे तो निकलना मुश्किल ही मानो,
राजनीति होती है लगभग दलदल की तरह|
जब दाने दाने को मोहताज हो देश का भविष्य,
क्यों ना बनना चाहेगा वो कसाब, अफजल की तरह |
खुद में एक आग को हमेशा जिन्दा रखो 'चिराग',
एक चिंगारी भी सब कुछ जला देती है दावानल की तरह|
------------------------विशाल

जब जरुरत आन पड़ी, सब दोस्त भी बेगाने हुए,
बच के चलता है हर शख्स गिरती हुयी दीवार से|
हम समझ कर जिनको अपना सब कुछ लुटाते रहे,
वो आकर ले गए एक दिन जान भी बड़े प्यार से|
--------------------विशाल

मैं एक ऐसा पेड़ हूँ, जो सबको छाँव बाँटकर खुद साए को तरसा है,
एक ऐसा बादल हूँ मैं, प्यासा रहकर भी औरों के लिए जो बरसा है|
----------------------------विशाल

Monday 30 July 2012

हर दर्द को दिल से मिटाया नहीं जाता,
कुछ दर्द तो दिल से लगाने के लिए हैं|
खुद को मशरूफ रखने के सारे ये जतन,
बस उसकी यादों को भुलाने के लिए हैं|
---------------विशाल

Saturday 28 July 2012


चोट पर चोट देती है मुझको ये दुनिया,
तबाही में शायद कुछ कमी रह गयी है|
ना जाने क्यों इसे ये भी बर्दाश्त नहीं है,
जो होठों पर जरा सी हँसी रह गयी है|
 -------विशाल

मैं किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा
उम्मीदों आरजुओं का साहिल नहीं रहा
और तो सब कुछ वैसा का वैसा ही था
बस शायद उसके पास दिल नहीं रहा|
--------------विशाल

वो पास आते आते हमसे दूर हो गए,
ख्वाब जिन्दगी के चकनाचूर हो गए|
एक दौर में जो हमारे रहम ओ करम पर थे,
कुर्सी मिली तो वही लोग मगरूर हो गए|
इस दौर की दास्तानें भी अजीब ओ गरीब हैं,
कल के मुजरिम आज सब हुजूर हो गए|
खुदगर्जी के चलते जिनको रिसने दिया कभी,
वो घाव अब सब के सब नासूर हो गए|
हम नींव के पत्थर बन कर ही खुश रहे,
ऐसे भी हैं जो बुर्ज के कंगूर हो गए|
कुछ लोग खुद को गला कर भी रह गये गुमनाम,
कुछ भांड नाच गा कर ही मशहूर हो गये|
--------विशाल

किसी दामन से उलझ जाऊं, नहीं मैं वो खार नहीं
एक ऐसा फूल हूँ जो किसी के गले का हार नहीं|
-----------------विशाल

ये सच है कि सूरज की तरह हर शाम ही ढलना होता है हमें,
उसके पहले लेकिन हर हाल में दूर तक चलना होता है हमे|
-----------------------विशाल

मैं समन्दर हूँ, मुझमे जर्फ़ है, इसीलिए खामोश रहता हूँ,
दरिया होता तो बेबजह उछलता रहता और आवाज करता |
(जर्फ -----गंभीरता, सहनशीलता)

----------विशाल

कोई सूरत ही नहीं मेरे टूटे दिल के जुड़ पाने की,
कहीं चीथड़ों को भी कभी किसी ने रफू किया है|
-------------------विशाल

ख़्वाबों में सही उससे मुलाकात होती तो होगी,
नज़रों से ही सही कभी बात होती तो होगी |
ये माना कि उससे तेरा मिलना मुश्किल है,
पर हर कदम पर वो साथ होती तो होगी |
नसीब में तेरे तपती लू के थपेड़े ही सही,
कभी तारों भरी चांदनी रात होती तो होगी |
जिन्दगी अगर है एक बाजी शतरंज की,
मुसलसल इसमें शह और मात होती तो होगी |
दिल भलें ही खाली हो गया हो उसका,
पर आँखों से बरसात होती तो होगी |
कोई चले ना चले साथ तेरे इस जहां में,
हर कदम संग ये कायनात होती तो होगी |
----------------विशाल

जाने क्या ढूंढती रहती हैं हरदम आँखे उसकी,
कुछ ना कुछ यक़ीनन उसने खोया तो होगा |
नाम आँखों से लिखा था जो आखिरी ख़त उसको,
पढ़ते हुए अश्कों से उसने भिगोया तो होगा |
खुली पलकों से ख्वाब देखना सब के वश की बात नहीं,
जाहिर है कि वो रात भर सोया तो होगा |
यूँ तो मेरी मौत का ख्वाहिशमंद रहा है वो,
पर दिखावे के लिए ही सही, वो रोया तो होगा |
वही पाते हैं हम जो हमने कभी दिया होता है,
जो काट रहा है, कभी उसने ही बोया तो होगा |
उसी के दम से रोशन है ये बुझता हुआ 'चिराग',
सूखी बाती को उसने कभी तेल में डुबोया तो होगा |
-------------------विशाल



मैं हूँ भी या नहीं, पता ही नहीं मुझे,
पर अभी भी मेरी दास्तान बाकी है |
सब तो छीन लिया दुनिया ने मुझसे,
बस जमीन और आसमान बाकी है |
कैसे छोड़ दूँ अभी इस लड़ाई को मैं,
बरी हुआ हूँ पर इल्जाम बाकी है|
और तो कुछ भी नहीं तेरा पास मेरे,
हाँ, उन लबों का निशान बाकी है |
उनकी गवाहियाँ कसूरवार ठहरा दे मुझे तो क्या ,
मेरे दिल का तो बयान बाकी है |
मैं ना रहा तो भी दुनिया चलती रहेगी,
तेरे लिए अभी पूरा जहान बाकी है|
-------------विशाल

लोग आज सब के सब घबराने लगे हैं,
अब तो अपने ही हमको आजमाने लगे हैं|
कभी बाप की त्योरी भी बेटे को डराती थी,
अब बेटे ही बाप को आँखें दिखाने लगे हैं|
हम वक़्त की रफ़्तार के साथ बहते रहे हैं,
पता ही नहीं कहाँ आ के ठिकाने लगे हैं|
मुजरिमों की हिमाकत तो देखिये जरा,
मुन्सिफों को ही आँखें दिखाने लगे हैं|
मेरी मौत का बेसब्री से इन्तजार है उन्हें,
देखिये ना अभी से फातिहा गाने लगे हैं|
नए दौर में नए रिश्ते बनाने की होड़ में,
रिश्ते खून के सब के सब धुंधलाने लगे हैं|
-----------------विशाल
आज फिर से गुजरा जमाना याद आया,
एक भूला बिसरा सा तराना याद आया |
घर की मुंडेर पर बैठी चिड़ियाँ याद आयीं,
और उनका चहचहाना याद आया|
एक पत्थर से ही तोड़ लेते थे आम हम अमराई में,
फिर से अपना वो निशाना याद आया|
कुछ कह पाने की हिम्मत जुटाना मुश्किल था,
बहानों से उसके घर आना जाना याद आया|
पापा की घूरती आँखों से बचाने के लिए,
माँ का झट से आँचल में छुपाना याद आया|
आज जब फुर्सत में बैठे सोचने कुछ एक पल,
ना जाने क्यों वो बचपन सुहाना याद आया|
इस नयी दुनिया के नए रंगों से वाकिफ नहीं हम,
इसीलिए शायद आज सब कुछ पुराना याद आया|
--------------------विशाल

Friday 27 July 2012


पोखरों तक नहीं पहुंचे, वो समुन्दर की बात करते हैं,
मुझे बेघर करने वाले ही अब घर की बात करते हैं|
भरोसा करें भी तो किस पर, कुछ समझ नहीं आता
दवा देने ही वाले ही अक्सर जहर की बात करते हैं |
जले में नमक छिडकने वाले वही लोग हैं शायद, जो
कफस में बेबस परिंदे के आगे पर की बात करते हैं|
बलात्कार, क़त्ल-ओ गारद, वहशत और दरिंदगी
ये अखबार शायद किसी जानवर की बात करते हैं|
कई बार मारा गया हूँ पर अब तलक जिन्दा हूँ मैं,
मेरे चाहने वाले इसलिए अब मेरे सर की बात करते हैं|

----------------------विशाल

तू खूब सोच समझ ले पहले, फिर मैं तो मिटा ही दूंगा अरमां,
कि शोलों को बुझाने की कोशिश में, उठता है कुछ और धुंआ |
----------------------विशाल

जिनके लिए खुद को कुर्बान कर दिया, अब वो ही मेरी मौत का अरमान रखते हैं
हम भी सख्तदिल हो गए जख्मों के सिलसिले से, हथेली पर ही अपनी जान रखते हैं|
 ------------------विशाल

ऊपर वाले को भी नहीं पसंद सख्ती बयान में,
इसीलिए नहीं दी उसने कोई हड्डी जुबान में|
जब भी कुछ बोल, बड़ा सोच समझ कर बोल,
ये वो तीर है जो कभी लौटता नहीं कमान में|
अपनी हर बात को ये दुनिया गौर से सुने-माने,
आ चल पैदा करें वो खनक अपने ईमान में|
----------------विशाल

कभी तो उसको ये अहसास होगा कि हमें खोकर उसने बहुत कुछ गंवाया है|
आखिर हमें ठुकरा नया रिश्ता उसने नफा नुकसान देखकर ही तो बनाया है|
----------------------------विशाल

मौत ने कब किसको बख्शा है, इससे किसकी रिश्तेदारी है
गर आज मेरे पास आई है तो कल परसों तुम्हारी बारी है|
जब जानते हैं हम कि इसे आना ही है हर हाल में एक दिन,
तो डरना कैसा, आ जाये, अपनी चलने की पूरी तैय्यारी है|
-----------------------विशाल

जहाँ कभी सुख होता है, वहां कभी गम भी होता है
जहाँ बजती हैं शहनाइयाँ, वहाँ मातम भी होता है|
मुझे पत्थर समझने वालों कभी तो गौर से देखो,
मेरी आँखें भी रोती हैं, मेरा दिल नम भी होता है|
--------------------विशाल

जैसे जैसे किसी बच्चे को शऊर होता जाता है,
वो जाने अनजाने खुदा से दूर होता जाता है|
बचपन में चाहता है वो रहें सब हरदम साथ,
और बड़ा होता नहीं कि मगरूर होता जाता है|
-----------------विशाल

जब उसने चाहा था मुझे, मैं जो तब था वही अभी भी हूँ,
फिर मुझे बदलने की ये जिद क्यों है, मैं समझा ही नहीं|
----------------------विशाल

अभी से किस तरह से कह दूँ मैं उसको बेवफा,
मंजिल तो अभी दूर है, अभी है फ़क़त रास्ता|
--------------विशाल

जिसे शिद्दत से रफू किया था, वो रिश्ता फिर टूट गया
सच में कहाँ जुड़ पाता है कांच, जो एक बार फूट गया|
-----------------------विशाल

हर बार की तरह रिश्तों की दुहाई देगा,
वो फिर मुझे किसी चौराहे पे ला ही देगा|
पत्थर के शहर में हैं पत्थर के ही हैं लोग,
यहाँ किसी को भला क्या सुनाई देगा|
बिक जाते हैं जहाँ सब ईमान औ धर्म,
वहां मेरे हक में है कौन जो गवाही देगा|
अब तो रीता ही रखा है उसने मुझको,
अब जब देगा तो सीधे रिहाई ही देगा|
जीवन में तो अंधेरों ने पीछा नहीं छोड़ा,
कब्र पर तो 'चिराग' कोई जला ही देगा|
-------------विशाल

इन साजिशों में हाथ किसी आश्ना का है,
गैरों को कब पता कि कहाँ चोट होती है मुझे|
----------------विशाल

मुझको ही तलब का ढब नहीं आया,
वरना वो मेरे पास कब नहीं आया|
मैं जब कभी भी गया खुदा की चौखट पर ,
वो समझ गया ये बेसबब नहीं आया|
------------विशाल

आज मेरे वजूद से भी शिकायत है इसे,
जब नहीं होऊंगा तब यही याद करेगी |
आज ठुकराती है हर मोड़ पर बेदर्दी से,
कल यही दुनिया मेरे लिए फ़रियाद करेगी|
--------------विशाल

बुरे वक़्त में कौन किसका साथ देता है भला,
पत्ते भी तो पतझड़ में साथ छोड़ देते हैं शजर का|
-----------------विशाल

इस दौर के हालातों का एक तब्सरा हूँ,
दिखने में खुश हूँ पर अन्दर से डरा हूँ |
माजरा कुछ भी हो, मैं चुप ही रहता हूँ,
शक होता है कि जिन्दा हूँ या मरा हूँ|
-------------विशाल

वैसे मुझको हर दम बहुत अकेला सा लगता है,
पर शाम ढले इस सूने घर में भी एक मेला सा लगता है |
दुनिया भर की यादें कहाँ कहाँ से मुझसे मिलने आती हैं,
उनमें से कुछ राहत देती हैं और कुछ बेहद तड़पाती हैं |
-------------------विशाल

जो छोड़ जाता है उससे मोहब्बत कैसी,
जो पास में आता है उससे नफरत कैसी |
जब जानते हैं, क्यों हम पेशोपेश में जियें
मौत आने के लिए है, जान जाने के लिए |
---------------विशाल

अब दिल नहीं लगता है दुनिया में,
खुदाया पास अपने अब बुला ले तू|
मेरे गुनाहों की कुछ खबर तो दे मुझे,
बिना बात के तो यूँ ना सजा दे तू |
--------------विशाल

किसी से क्या कहूँ, अब कुछ समझ ही नहीं आता,
जिसे पाला अपना समझ, वो ही मुझको डस गया|
हम रावण से लड़ने में उलझे रहे जीवन भर,
जिसे राम समझे थे, वही जा लंका में बस गया|
------------------विशाल

परिंदे भी हमेशा कहाँ रह पाते हैं आसमानों में
उन्हें भी लौटना ही पड़ता है अपने आशियानों में|
जो आज ऊपर है, कभी नीचे भी आएगा,
क्यों ये समझ आती नहीं है पर हम इंसानों में|
------------------विशाल

ये जिन्दगी क्या है, बस एक कशमकश का नाम है,
मौत कुछ और नहीं, इस अफ़साने का ही अंजाम है|
 ---------------विशाल

एक जरा सी बात क्या हुयी कि बरसों का याराना गया
इससे तो दुश्मन ही बेहतर जो आज भी पहचानते हैं मुझे|
--------------------विशाल

कौन रोता है उम्र भर किसको, आदमी जल्द ही सब कुछ भुला देता है
पर इन्हीं खुदगर्जों के लिए इंसान, अपना सारा जीवन गवां देता है|
------------------विशाल

जब भी कभी हमें कुछ काम अपने दोस्तों से आ पड़ा,
समझ गए हम कि उनके बेवफा होने का वक़्त आ गया है|
अब सारे रिश्ते नाते, यारी दोस्ती बस कहने भर की ही है,
पता ही नहीं चलता कि कौन कब किसको कहाँ खा गया है|
------------------------विशाल

तुम हाथ थाम लेते गर तो हालात बदल सकते थे,
माना दुश्वारियां थीं पर हम साथ में चल सकते थे|
अब तो बस ये अँधेरी राहें ही हैं मुस्तकबिल मेरा,
तुम साथ होते तो इन पर 'चिराग' जल सकते थे|
----------------विशाल

मेरा मसीहा, मेरा कातिल, कोई और नहीं मैं खुद ही हूँ
चाहे जहर हो, चाहे इक्सीर, कोई और नहीं मैं खुद ही हूँ|
----------------------विशाल

जब तक जिए यहाँ, जिन्दादिली से जिए,
मेरे मरने का ए दोस्त मातम ना करना |
हर फर्ज अपना पूरा कर के ही चला हूँ,
आंसू बहाकर मेरा वकार कम ना करना|
----------------विशाल

जो ज़माने में कई बार मात खाते हैं, वही एक दिन यहाँ पर जीत जाते हैं
जो कभी हौसला ही नहीं कर पाए, उनके हिस्से कैसे कोई मकाम आये|
------------------------------विशाल

यही हाल है इस दुनिया का, किसी की मेहनत किसी का फल,
इसीलिए बोकर फसल, मैं नहीं सोचता, कौन इसे काटेगा कल |
-----------------------विशाल

कई बार जानबूझ कर फरेब खाना अच्छा लगता है,
यूँ ही अपने आप में मुस्कराना अच्छा लगता है|
जानता हूँ अब उसकी जिन्दगी में कोई जगह नहीं मेरी,
पूछता हूँ हर बार, क्योंकि उसका हर बहाना अच्छा लगता है|
-------------------------विशाल

हम गैरों की बात क्या करें, हमें तो दोस्त ही आजमाते हैं
लोग काँटों से जख्मी होते हैं, हम फूलों से जख्म खाते हैं |
------------------------विशाल

मुझे भुला दो, अब मेरी अलग ही दुनिया है,
कुछ मजबूरियां ही होंगी, जो उसने ये कहा है
दूर हो जाऊंगा पर उसे भुला नहीं सकता,
कहीं जिस्म भी कभी रूह से जुदा रहा है|
-----------------विशाल

ये मत भूल कि गर तू शोले को हवा देगा,
वो कभी तेरे ही आशियाने को जला देगा|
जो अपने सिवा कभी कुछ सोच ही नहीं पाया,
तेरे जैसा शख्स किसी और को भला क्या देगा|
-------------------विशाल

 जो औरों से उम्मीदें रखते हैं, अक्सर ख्वार होते हैं
यहाँ जिन्हें हम रहबर समझते हैं, वही बेकार होते हैं|
--------------------विशाल
ख्वार----------अपमानित, तिरस्कृत, जलील
रहबर----------रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक


माना तेरे मुक़द्दर में कांटे ही कांटे हैं, पर ये दिन भी गुजर जायेंगे, तू इस तरह से गम ना कर
ये कुदरत किसी एक की नहीं, तुझ पर भी मेहरबाँ होगी, तेरा भी दामन फूलों से जाएगा भर|
------------------------------------विशाल

जब जब भी मैंने आँगन में चिराग जलाया है, आसमान में भी चाँद निकल आया है
आज घर में अँधेरा है तो चाँद सितारों ने भी साथ ना देने की कसम खायी है लगता|
---------------------------------------विशाल

छुप कर वार करने वाले, तू ये समझ ले कि ये कोई अच्छा काम नहीं होता,
खुद को चाहे जो समझा पर आड़ से घात करने वाला हर कोई राम नहीं होता|
--------------------------------विशाल
उम्मीदों आरजूओं का साहिल नहीं रहा,
शायद अब मैं प्यार के काबिल नहीं रहा | 
या तो मुझमें पहले सी कोई बात नहीं रही,
या उसके पास ही अब वो दिल नहीं रहा |
-------------------विशाल

क्यों फिक्र करूँ इसकी कि मौत के बाद मेरा होगा क्या,
मैं नहीं रहूँगा देखने को, चाहे कोई जला दे चाहे दे दफना|
-----------------------विशाल

कहीं कोई भी अपना नहीं, जाने कैसा हो गया है ये जहाँ
किसी को फुर्सत ही नहीं कि देख सके हमारा दर्दे-निहाँ|
---------------------विशाल
मैं था इस बात से अलमस्त कि चोट औरों को है पहुंचायी,
अब जाना, जिसे मैं चाक कर बैठा, वो मेरा ही गिरेबाँ था| 
--------------------------विशा

Monday 14 May 2012


जितनी बार भी उजड़ता है, हम बना लेते हैं नया फिर से आशियाँ,
देखते हैं इसके दम को, कब तलक आजमाएगा हमको तूफाँ |

-विशाल

मैं भी एक इंसान हूँ, कोई दीवार तो नहीं, कि
जो भी आया कुछ न कुछ सुना कर चला गया |
-
विशाल

जिन्दगी में बस कुछ दिनों की ही कशमकश बाकी है अब,
कुछ गुजर गयी है, बाकी भी गुजर ही जाएगी धीरे धीरे |

-विशाल

जो अभी से अंधेरों से घबरा गए हैं,
जिनके चेहरे कभी के मुरझा गए हैं,
कह दो उनसे कि ये सच है औ ये होगा,
छटेंगे ये बादल भी जो छा गए हैं |

-विशाल

हम कारवां के साथ रह के भी उससे जुदा रहे,
जैसे कोई शख्स हर दम खुद से खफा रहे |
दूसरों को जानने में खुद को गये हम भूल,
कोशिश करो कि सामने खुद के भी आइना रहे |


-विशाल

किस पर करें भरोसा आज की दुनिया में, पीठ में खंजर मार जाते हैं जो यगाने हैं,
सब कुछ इन्हें दे के भी हार के बैठा हूँ, इनसे तो वो बेहतर जो पूरी तरह बेगाने हैं |

-विशाल

(प्रभु से मिलन के सन्दर्भ में हैं ये पंक्तियाँ)

लोग जिन्दगी की दुआ करते हैं, मेरे लिए ये तुझसे दूर रहने की घड़ी है
मौत तो आनी है, आएगी ही, जल्द आये क्योंकि मुझे वस्ल की पड़ी है |

-विशाल

मुझे साहिल का कोई ख्वाब नहीं, मैं तूफानों का हूँ खूगर,
ले चल मांझी मंझधार में तू, मेरे डूबने की परवाह न कर |

-विशाल

यूँ तो तमाम ग़मों का घर है ये दिल, पर मन में ये ख़ुशी तो है,
कि जो मांगी नहीं कभी किसी से, होठों पर मेरे ऐसी हँसी तो है |

-विशाल

आरजू, उम्मीदें, ख्वाब और अरमान सब सीने में दफ़न हैं,
कहने को हम जिन्दा सही पर क्या किसी मजार से कम हैं |

 -विशाल

सम्मानित शिक्षकों के लिए-----

सलीके से संवारो तो एक पत्थर भी संवर सकता है,
तुम्हारे हाथों में तो तकदीर ने मासूम फ़रिश्ते सौंपे हैं |

-विशाल

नाखुदाओं के भरोसे भी कितनों को डूबते देखा है
आ चल खुद चप्पू चलाकर दरिया पार करते हैं |
मर भी गए तो बेहतर है ये डर डर के यूँ जीने से,
वैसे भी तो रोज ज़माने में न जाने कितने मरते हैं |

-विशाल

गम न होता मुझे अगर वो लूट ले जाते केवल मेरा नशेमन,
कैसे चुप बैठूं मैं जब लुटा जा रहा हो सारा का सारा गुलशन |

-विशाल

अपनी तमाम खुशियाँ बेचकर भी मैं तुम्हारे गम खरीद लूँगा,
जहाँ दुनिया निगाह फेर लेगी, उसी मोड़ पर तुमको मैं मिलूँगा |

-विशाल

यूँ तो हजारों आशियाँ हैं चमन में, पर बिजलियाँ मेरे ही आशियाने पर क्यों गिरी हैं हर बार
जिसने जो चाहा उसे मिल गया, फिर मेरे ही नसीब में क्यों लिखा है इन्तजार औ इन्तजार|

-विशाल

उसकी यादें, उसके अफ़साने, उसकी तमन्ना और उसका गम
यही काफी है जीने को, इसके सिवा कुछ चाहते ही कहाँ हैं हम |

-विशाल

चार कन्धों पर हो के सवार जब भी कोई जाता है,
कुछ अन्दर टूटता है, मन अवसाद से भर जाता है |
वैसे तो मेरा और जाने वाले का कोई रिश्ता नहीं,
पर है तो वो भी माँ, बाप, भाई, बेटा, पति, पत्नी ही कोई |

-विशाल

आज सच बोलेगा अगर तू तो नियति तेरी अभिमन्यु है,
कौरव अट्टहास ही करेंगे क्योंकि अब कहाँ कोई कृष्ण है |

- विशाल

क्यों मेरे ही दर पर खड़ा हो जाता है आ के हर इम्तिहाँ,
ऐसा लगता है किसी ने जान कर दे दिया हो मेरा पता |

-विशाल

वो पूछते हैं कि परेशां हाल थे तो भी तुमने क्यों पुकारा नहीं हमें,
क्या बताएं उन्हें कि डूबते हुये भी तिनके का एहसान गवारा नहीं हमें |

-विशाल

हम कहीं भी हों बना लेंगे जगह अपने लिए, फिर भला क्योंकर करें गम
और कुछ आये ना आये पर, दिल में उतर जाना बखूबी जानते हैं हम |

-विशाल

 पाँव जख्मी हैं मेरे और रहबरों की भी कुछ खबर नहीं,
फिर भी ख्वाहिश है चलने की, मंजिल बुलाती है मुझे |

-विशाल

पत्थरों की ठोकर से मुसाफिर तू क्यों घबराता है,
कई बार इनसे ही मंजिल का पता मिल जाता है |

-विशाल

एक से लगते हैं यहाँ पर सब, कौन है अपना कौन पराया,
कैसे पहचाने, हर शख्स तो यहाँ नकाब पहन कर है आया |

 - विशाल

मुद्दतों से है मुझे एक इन्सां की तलाश पर,
कोई चेहरा ना मिला, बस नकाब ही मिले |

-विशाल

गर खुदा साथ है कोई सफीना डूबा नहीं सकता,
वरना साहिल पर भी नाखुदा बचा नहीं सकता |

-विशाल

Saturday 21 April 2012


जिन शाखों से कई कई बार गिरा है,
फिर उन्हीं पर घोसला बनाता है....
पंछी भी इंसान से हर हाल में अच्छा,
जो सब रिश्ते नाते तोड़ जाता है.....

-विशाल
सौ बार जियूं, सौ बार मरुँ पर हो जाऊं हर बार कुर्बाने वतन,
एक यही ख्वाहिश है कि हर बार तिरंगा ही बने मेरा कफ़न |

-विशाल

मेरी तमन्नाओं का क्या, रोज जिलाता हूँ औ रोज मारता हूँ,
अब अपनों ने भी साथ छोड़ दिया है, इसीलिए हर जंग हारता हूँ |

-विशाल

जो किसी के काम ना आ सके उसे आदमी मैं क्या कहूँ,
जो गुजरे खुद की फिक्र में उसे जिन्दगी मैं क्या कहूँ |

-विशाल

बदनसीबी घेर ले तो रख कदम सोच समझ कर ध्यान से,
अंधेरों में तो खुद का साया भी जुदा हो जाता है इंसान से |

-विशाल

हम तो परेशां हैं दुनिया के हालातों से,
खुद के लिए हमको कभी गम नहीं होता,
एक खुदा के दर को छोड़ दें तो हमारा सर,
किसी की चौखट पर ख़म नहीं होता......

-विशाल
इस जीवन में मैंने अब तक बस यही कमाया है,
कुछ अधूरे ख्वाब और आँखों में पानी पाया है |

-विशाल

Saturday 14 April 2012


जो पसे पुश्त खंजर मारते हैं और सामने शरीफ हैं,
उनसे वो हर हाल में बेहतर जो खुलकर हरीफ हैं |
(पसे-पुश्त------पीठ पीछे
हरीफ---------प्रतिद्वन्दी )

-विशाल

गैरों की बातें क्या करना, उनसे से तो कोई गिला नहीं,
अपने ही चोट दिया करते हैं, अपनों से ही कुछ मिला नहीं|

-विशाल

वो साथ मेरा छोड़ गया मुझको पत्थरदिल कहते हुए,
शायद उसे नहीं पता पत्थर टूटने पर आवाज होती है|

-विशाल

ना हमसफर, ना हमनवां, ना किसी का हमसफीर हूँ,
क्या बताऊँ हाल किसी को मैं, ना रिहा ही हूँ ना असीर हूँ|

-विशाल

भीड़ भी परेशां करती है मुझको और ये खल्वत भी जीने नहीं देती,
तमन्नाओं के मर जाने का ये असर होगा मुझ पर, अब जाना|

-विशाल

खुदी को साथ रख कर तू कैसे खुदा को पायेगा,
इस खुदाई में भला लाया था क्या ले जायेगा|

-विशाल

माना तेरी नजर में मैं एक जर्रा ही सही, कतरा ही सही
मत भूल, इन्ही बूंदों ने ना जाने कितने समंदर भर डाले |

--विशाल

हमने भले ही देख ली हो राह महरोमाह की,
मगर अपने भीतर का अँधेरा कम ना कर पाए|

-विशाल

Monday 9 April 2012


खुदा की बात क्या करना, वो खुद से भी दूर होता है
जब इंसान दौलत या ताक़त के नशे में चूर होता है|
फिर उसके लिए नहीं कीमत किसी भी रिश्ते नाते की,
वो सब अपनों को भुलाकर पूरी तरह मगरूर होता है|

-विशाल

इस दौर में जब उजालों पर हुयी तारीक भारी है,
चिरागों की हिफाजत अब हमारी जिम्मेदारी है|
उनसे क्या गिला वास्ते जिनके ये केवल मिटटी है,
सोचना हमें है क्या करें क्योंकि ये माता हमारी है|

(तारीक---अंधकारमय, अंधियारा)

-विशाल

Saturday 7 April 2012


लोग कहते हैं कि उम्मीद पर कायम है ये दुनिया,
वो क्या करे जिसे अब किसी से कोई उम्मीद नहीं....

-विशाल

यूँ तो कहने को इस जहान में दोस्त हैं सैकडों हजार,
पर मुश्किल में साथ देता है केवल वही परवरदिगार|

-विशाल

किस बात का शिकवा औ' किस से करें गिला,
जो तक़दीर में नहीं, कब किस को है मिला.....!!!

-विशाल

शमां की तक़दीर में बस जलना लिखा था, जलती रही
खुश है वो, कईयों की आस उसकी रौशनी में पलती रही |

-विशाल
इरादे-कोहशिकन हैं तो क्यों कोई शिकवा करें तकदीर से,
गर चाह ले इंसान तो क्या मुमकिन नहीं है तदबीर से |

(इरादे-कोहशिकन--पर्वत को तोड़ने वाला इरादा या संकल्प
तदबीर---मेहनत, कोशिश)

-विशाल

Thursday 5 April 2012

शमां-ए-आरजू को कभी बुझने नहीं देना ए दोस्त,
अंधेरी रात के पर्दों में ही दिन की रौशनी भी है|

- विशाल
जिन्हें रहबर समझा, वही रहजन निकले हैं,
काफिला मंजिल तक पहुँचता भी तो कैसे?
----------------विशाल
निभाने हैं रिश्ते अगर तो अदाकारी आना जरुरी है,
सच्चे प्यार को तो ये दुनिया बनावट समझती है|
- विशाल

Sunday 1 April 2012


जब उम्र फानी है तो मौत से डरना कैसा,
जब जाना है जायेंगे, हर रोज का मरना कैसा |

(फ़ानी -- नश्वर, नाशवान )

-विशाल

दर्द वही बांटेगा सबका जो हर दुःख को सहता है,
छाया करता बादल, सर पर धूप संभाले रहता है|

-विशाल

एक पल ही रुका था मैं पर मंजिल दूर हो गयी
लगता है मैं रुक गया पर रास्ता चलता रहा|

-विशाल

मैं हर बार जान बूझ कर ही चुनता हूँ काँटों भरी डगर,
मुझे चुभेंगे पर औरों के लिए आसां हो जायेगा सफ़र|

-विशाल

अगर मुझसे मोहब्बत है, तो कुछ इस तरह पता देना
सामना जब जब भी हो, बस हौले से मुस्करा देना|

-विशाल

Tuesday 20 March 2012

मुझको पत्थर ना मारो  ज़माने वालों, खुद को ही चोट पहुँचाओगे
पत्थर से टकरा कर चिंगारी ही निकलेगी,अपना ही घर जलाओगे |

-विशाल....
 ज़माने भर से मिलने की जिद में, रह गया मै,
भीतर जो शख्स था उसे जान ही नहीं पाया |
यूँ तो तार्रुफ़ रहा मेरा दुनिया की हर शै से,
बस एक खुद को ही कभी, पहचान नहीं पाया |

-विशाल....
और तो मेरे दामन में कुछ भी नहीं,
बस दुआ देकर चला जाऊंगा...
इस तरह आँखें ना फेर ऐ दोस्त,
जब नहीं रहूँगा, बहुत याद आऊंगा...

-विशाल...
इसमें दफ़न सब हसरतें, चाहतें, अरमान हैं
जाने ये है दिल मेरा, या कोई कब्रस्तान है....

-विशाल....

Wednesday 14 March 2012

 वो जितनी बार मिला, अपनी नामालूम चोटें भी बताता रहा
क्या करता मै, खुद के नासूरों को छुपा कर मुस्कुराता रहा ।

-विशाल..
वो मुझसे थक चुकी है और मै अब थक गया हूँ ज़िन्दगी से,
उसकी बाहें न सही, मौत तू अपनी पनाहों में ले ले मुझको ।

-विशाल.....
हाँ मै पत्थर हूँ, कब इनकार किया मैंने
तुने तराशा ही नहीं वर्ना देवता होता ||

-विशाल

Friday 24 February 2012

यहाँ हर मोड़ पर दर्द दिया करते हैं लोग,
पर भरी भीड़ में कोई गमगुस्सार ना मिला |
इन आँखों ने सजाये थे रंगीन ख्वाब कई,
यहाँ इनका कभी कोई खरीददार ना मिला |
जाने क्यों नींद से बोझिल हैं आँखें हैं सबकी,
पूरी महफ़िल में कहीं कोई बे दार न मिला |
उनके हाथों में है फैसला कई किस्मतों का,
हमको तो अपनी का भी, इख्तियार न मिला |

-विशाल...

Monday 23 January 2012

ये सोच खुद अपने ज़ख्म उधेड़ कर रख दिए मैंने,
कि वो इन पर मुस्कुराहटों का मलहम लगाएगी,
अभी तो मेरे हिस्से नफरत के सिवा कुछ भी नहीं,
पर किसी दिन तो वो मेरे लिए भी मुस्कुराएगी...
देखे थे जो ख्वाब कभी, अभी भी आते हैं
पर ना जाने क्यों, अब मुझे ये डराते हैं,
दुनियावालों के दिल का कुछ पता नहीं चलता,
"चिराग" कभी जलाते कभी बुझाते हैं,
मै दुश्मनों से शिकायत करूँ भी तो कैसे,
जब मेरे ये दोस्त ही, हर घड़ी मुझे आजमाते हैं....

-विशाल...

Wednesday 4 January 2012

वो मदहोश था दुनिया की बहारों में कुछ यूँ,
कि उसको कभी मेरा ख़याल आया ही नहीं,
हम देखते रहे पीछे मुड़-मुड़ दूर तलक,
उसने तब भी हमें वापस बुलाया ही नहीं...

-विशाल.....

रोज़ मिलते रहे पर मुलाक़ात ना हो पायी,
कहने को था बहुत कुछ, पर बात ना हो पाई,
यूँ तो वादा था उसका, हमेशा साथ चलने का,
कुछ मजबूरियाँ रही होंगी, जो साथ ना हो पाई...

-विशाल...
 उसका जाना ज़िन्दगी को उदास कर गया
वो मौसम की तरह था, कब का गुज़र गया
मै समझा ही नहीं कि ये क्या हुआ मेरे साथ,
कहने को तो ज़िंदा हूँ, पर कब का मर गया...

-विशाल...
ज़ख्म खा कर भी उसे दुआ दी मैंने
कुछ ऐसे ही ज़िन्दगी बिता दी मैंने
मै ही था मुंसिफ खुद पर इल्जामो का,
खुद को हर बार इसीलिए सज़ा दी मैंने....

-विशाल...