मुझको पत्थर ना मारो ज़माने वालों, खुद को ही चोट पहुँचाओगे
पत्थर से टकरा कर चिंगारी ही निकलेगी,अपना ही घर जलाओगे |
-विशाल....
ज़माने भर से मिलने की जिद में, रह गया मै,
भीतर जो शख्स था उसे जान ही नहीं पाया |
यूँ तो तार्रुफ़ रहा मेरा दुनिया की हर शै से,
बस एक खुद को ही कभी, पहचान नहीं पाया |
-विशाल....
और तो मेरे दामन में कुछ भी नहीं,
बस दुआ देकर चला जाऊंगा...
इस तरह आँखें ना फेर ऐ दोस्त,
जब नहीं रहूँगा, बहुत याद आऊंगा...
-विशाल...
इसमें दफ़न सब हसरतें, चाहतें, अरमान हैं
जाने ये है दिल मेरा, या कोई कब्रस्तान है....
-विशाल....
Wednesday 14 March 2012
वो जितनी बार मिला, अपनी नामालूम चोटें भी बताता रहा
क्या करता मै, खुद के नासूरों को छुपा कर मुस्कुराता रहा ।
-विशाल..
वो मुझसे थक चुकी है और मै अब थक गया हूँ ज़िन्दगी से,
उसकी बाहें न सही, मौत तू अपनी पनाहों में ले ले मुझको ।
-विशाल.....
हाँ मै पत्थर हूँ, कब इनकार किया मैंने
तुने तराशा ही नहीं वर्ना देवता होता ||