Tuesday 14 August 2012


दरिन्दे को तो क़त्ल औ गारद की खबर चाहिए,
वो तेरा हो कि मेरा हो, उसे तो बस सर चाहिए |
साँपों को बस्ती में देख पूछ बैठा आने का सबब,
मुस्कराकर बोले आप लोगों से थोडा जहर चाहिए|
चाँद सितारों जैसे वादे, नहीं हैं उनके किसी काम के,
भूखों को रोटी और बेघरों को एक अदद घर चाहिए|
भले ही दूर तक निकल जाते हैं आबोदाने के लिए ,
लौट कर परिंदों को फिर वही अपना शजर चाहिए|
औरों के लिए जीने वाले कहाँ हैं अब, आ ढूंढें जरा
एक दो नहीं, इस तरह के हजारों बशर चाहिए|
पल दो पल का साथ अब देता नहीं सुकून-ए-दिल,
साथ उसका अब मुझे हर हाल में उम्र भर चहिये|
---------------------विशाल

बशर---------इंसान
शजर--------पेड़

अजब रस्म है दुनिया की, कोई खुश तो कोई नाशाद होता है,
जब कोई चमन उजड़ता है तो कोई कफस आबाद होता है|
---------------------विशाल

हर बार ना जाने क्यों, मैं ही नाकाम रह गया,
शायद अभी दुनिया के दस्तूर आते नहीं मुझको|
--------------------विशाल

सबकी अर्थियां को घरों से निकलते देखा है मैंने,
पर मैं रोज अपना जनाजा लेकर घर जाता हूँ|
जब देखता हूँ वहां सूनी आँखों को राह तकते,
हर बार और थोडा सा मर जाता हूँ |
----------------विशाल

कभी पाया उसको खूबसूरत कँवल की तरह,
कभी लगती रही मुझको वो ग़ज़ल की तरह |
अरसा हुआ उसके दीदार को तरसते रहे हम,
कभी उतरेंगे उसके आँगन में बादल की तरह |
वैसे किसी के रहने की गुंजाइश ही कहाँ इसमें,
ये दिल मेरा है एक सुनसान मरुस्थल की तरह |
किसी वहशी की हवस की सजा भला उसको क्यों,
मेरी नज़रों में वो अब भी पाक है गंगाजल की तरह |
ऊपर से सख्त पर भीतर से बेहद नरम ,
पिता हमेशा ही होते हैं नारियल की तरह |
ये वो जगह है जहाँ गधे रेंकते हैं हमारे पैसों पर,
संसद लगती है मुझको किसी अस्तबल की तरह|
अब सहा नहीं जाता हमसे कठपुतली का राज,
काश कोई फिर से आ जाता अटल की तरह|
इसमें कूदोगे तो निकलना मुश्किल ही मानो,
राजनीति होती है लगभग दलदल की तरह|
जब दाने दाने को मोहताज हो देश का भविष्य,
क्यों ना बनना चाहेगा वो कसाब, अफजल की तरह |
खुद में एक आग को हमेशा जिन्दा रखो 'चिराग',
एक चिंगारी भी सब कुछ जला देती है दावानल की तरह|
------------------------विशाल

जब जरुरत आन पड़ी, सब दोस्त भी बेगाने हुए,
बच के चलता है हर शख्स गिरती हुयी दीवार से|
हम समझ कर जिनको अपना सब कुछ लुटाते रहे,
वो आकर ले गए एक दिन जान भी बड़े प्यार से|
--------------------विशाल

मैं एक ऐसा पेड़ हूँ, जो सबको छाँव बाँटकर खुद साए को तरसा है,
एक ऐसा बादल हूँ मैं, प्यासा रहकर भी औरों के लिए जो बरसा है|
----------------------------विशाल