Tuesday 19 March 2013


मैं जो कुछ लिखता हूँ यहाँ, वो मेरे दिल की आवाज होती है
लोग क्या सोचेंगे मेरी बातों पर, ये मैं कभी सोचता ही नहीं।

 -विशाल

Friday 15 March 2013


मैंने अपने हाल-ए-दिल को अश्कों की इबारत में ढाला था,
पर जिन्हें अपना समझता हूँ उन्हें इसका तर्जुमा मालूम नहीं।

--------------------------विशाल

तरक्की के इस दौर में ऐसा क्या है जो नहीं होता,
अजीब ये है कि बस आदमी ही इंसाँ नहीं होता।

------------------------विशाल

मेरी मुश्किलों में सब मेरा साथ छोड़ गए तो ताज्जुब कैसा,
मैंने पतझड़ में पत्तों को भी शाखों से अलग होते हुए देखा है।
मैं टूट जाता हूँ, बिखर जाता हूँ ऐसे में तो कोई नयी बात नहीं,
मैंने पत्थरों को भी वीराने में सिसकते हुए, रोते हुए देखा है।

----------------------------विशाल

जितने लुटेरे थे यहाँ, सब के सब मोहतरम हो गए,
चम्बल के डकैत लुटियनवासियों के हमदम हो गए।
मैं ताउम्र लोगों को अपना बनाने की जुगत में रहा,
पर जिन्हें भी अपना समझा, वही मेरे दुश्मन हो गए।

-------------------------विशाल

वो अफ़साना अब बहुत पुराना हो गया है।
उससे मिले हुए तो एक जमाना हो गया है,
उसकी जिन्दगी में मेरे लिए कोई जगह नहीं,
अब वहां पर गैरों का आना जाना हो गया है।

------------------विशाल

मासूमों के खून से सान रखे हैं जिन्होंने अपने हाथ,
वो लोग भी जाते हैं हज पर, शैतान को पत्थर मारने।
जिन्होंने लोगों को आंसुओं के सैलाब में डुबाये रखा ताउम्र,
वो सबसे पहले पहुँचते हैं भगवान के दर, खुद को तारने।

-------------------------विशाल

औरों के कितने ही मसलों का जवाब बन जाता हूँ मैं ,
जब खुद की बात आई तो मैं बस एक सवाली ही रहा,
सबके दामन में खुशियाँ भरने का एक जूनून था मुझे,
मेरा दामन हमेशा की तरह इस बार भी खाली ही रहा।

------------------------विशाल

कौन कहता है कि लफ्जों के बिना बहुत मुश्किल है किसी की बातों को सुनना,
मैंने देखा है नदियों,हवाओं,परिन्दों से लेकर दरख्तों तक को कुछ कहते हुए।

---------------------------------विशाल

मत कहो पत्थरदिल इन कातिल हुक्मरानों को,
ये मुझे पत्थरों की बेहद तौहीन लगती है,
उनमें तो कोई जज्बात बाकी ही कहाँ है अब,
पत्थरों के बीच से तो गंगा निकलती है।

---------------विशाल

जिन्हें कभी अपना समझा ही नहीं हमने,
वो गर क़त्ल भी कर दें तो रंज नहीं होता ,
तुम्हें तो आज तक अपना समझते आये हैं,
जब तुम खंजर मारते हो पीठ पर, बड़ा तकलीफ होती है।

--------------------विशाल

मेरे कातिलों के गुनाह तो कभी के माफ़ कर दिए मैंने,
वो उनसे लाख दर्जे बेहतर हैं जो जीते जी मार देते हैं।

----------------------विशाल

तुम्हारे मकान का तो बस छज्जा ही गिराया गया है तो कलपते हो,
कभी उन मासूम परिंदों के बसेरों को भी याद करो जो तुमने तोड़े थे।

--------------------------------विशाल

जिसकी मूरत को सीने में सजाये रखता था मैं हमेशा दिल-ओ-जान से,
बुतपरस्त काफिर कह कर वही क़त्ल कर गया मेरा बड़े इत्मीनान से।

-----------------------------------विशाल

दुनिया वालों से तो अपना हर जुर्म छुपा ले जाता हूँ मैं,
पर मेरे अन्दर ही कोई रहता है जो मुझे जीने नहीं देता।

-----------------------विशाल

अपनी आँखों में बसे सुनहरे ख़्वाब तभी के तोड़ दिए मैंने,
जब झाँका था भूख से बिलखते बच्चों की खाली आँखों में।

---------------------------विशाल

टूटे सपने, टूटा दिल है , बंद गली और राह अँधेरी,
इन लफ्जों में सिमट गयी है जीवन भर की गाथा मेरी।

-------------------------विशाल

कुछ दिनों तक यहाँ से जाना बहुत अच्छा रहा,
कुछ पुराने शहरों में ठिकाना बहुत अच्छा रहा।
खुद से भी मुलाक़ात बाकी थी काफी समय से,
अपने ही कुछ और पास जाना बहुत अच्छा रहा।

--------------------विशाल

दुनिया से तो जीत गया मैं पर खुद से ही हार गया,
और कोई मुझे क्या मारता, मेरा 'मैं' मुझको मार गया।
अपने लिए ही जीने वाला उलझा रहा इसी दुनिया में,
औरों के हित जीने वाला ही भवसागर के पार गया ।

--------------------विशाल

मैं जानता हूँ कि उससे मिलना मेरी तकदीर में नहीं,
कुछ खुशफहमियां ज़िंदा रहने के लिए जरुरी हैं मगर।

-----------------------विशाल

इससे पहले कि किसी अपने के दिल से उतर जाऊं,
मुझ पर ये इनायत कर देना मौला कि मैं मर जाऊं।

-------------------------विशाल

मैं कब ये मान बैठा हूँ कि वो सितमगर नहीं है,
वो भले ही समझता हो कि मुझको खबर नहीं है,
इससे ज्यादा शराफत की उम्मीद क्या रखूँ मैं,
ये क्या कम है कि हाथ में उसके पत्थर नहीं है।

--------------------विशाल

ज़िंदा रहने की जद्दोजहद में कट गयी मेरी उम्र तमाम,
किसी ने जीने ना दिया और किसी ने मरने ना दिया।
एक वक़्त में मै डूब गया था आंसुओं के सैलाब में,
जिन्हें अपना समझता था उन्होंने ही उबरने ना दिया।

------------------------विशाल

उसने तो अपना जिस्म ही बेचा था ये सोचकर कि फाका टल जाए,
यहाँ रूह तक बेच देते हैं लोग कि किसी तरह मतलब निकल जाए।

--------------------------------विशाल

इस नए दौर रोज रोज रची जाती है नयी नयी किस्मों की रामायण,
राम को वनवास भेजने की जुगत भिड़ाते हैं अब सीता औ लक्ष्मण।
उस दौर में तो मुमकिन था राम के लिए राक्षसों को मार गिराना ,
आज तो खुद राम में ही कई बार नजर आने लग जाता है रावण।

------------------------------विशाल

मेरी तकलीफों को देखकर ये आसमाँ भी रोया है बहुत बार,
जिन्हें अपना समझता हूँ, जख्मों को उधेडा ही किये हैं वो।

-----------------------विशाल

अब तो लोगों ने इस दुनिया को बाजार बना डाला है,
सबको सामान और खुद को खरीददार बना डाला है।
पर मैं खुद को आदी ही नहीं बना पाया हूँ इस दौर का,
इस भागती जिन्दगी ने मुझको बीमार बना डाला है।

-----------------------विशाल

मैंने देखा है रौशनी का एक कतरे को भी अंधेरों को हराते हुए,
फिर इस बात पे रंज क्या करना कि मेरी जंग में मैं अकेला हूँ।

-------------------------विशाल

जिसने आँखों को ख्वाब दिए थे, वो ही इनको जला गया,
अब तक के अपने जीवन में, मै बार बार ही छला गया।
जो दुनिया की रीत रही है, मैं भी उसका एक हिस्सा हूँ,
कि कोई तो आया दुनिया में और कोई यहाँ से चला गया।

--------------------------विशाल

मेरे होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला इस दुनिया को,
मेरे अपनों ने तो कभी का बिसरा दिया है मुझे अपनी यादों से...

- विशाल

मैं यहाँ रोज बा रोज जीने की जद्दोजहद में उलझा रह जाता हूँ,
लोग बरसों तक का कैसे सोच लेते हैं, समझ ही नहीं पाता हूँ।

- विशाल

मुझको चोट देते जाने से तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला
एक जमाने से मैं आदी हूँ ग़मों का, इन्हें ही ओढ़ता बिछाता हूँ

- विशाल

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तू मुझे क़त्ल करने का सामान क्यों जुटाता है,
मेरे अपनों ने तो मुझे कभी का ही मार दिया है।

- विशाल
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