जिन शाखों से कई कई बार गिरा है,
फिर उन्हीं पर घोसला बनाता है....
पंछी भी इंसान से हर हाल में अच्छा,
जो सब रिश्ते नाते तोड़ जाता है.....
-विशाल
सौ बार जियूं, सौ बार मरुँ पर हो जाऊं हर बार कुर्बाने वतन,
एक यही ख्वाहिश है कि हर बार तिरंगा ही बने मेरा कफ़न |
-विशाल
मेरी तमन्नाओं का क्या, रोज जिलाता हूँ औ रोज मारता हूँ,
अब अपनों ने भी साथ छोड़ दिया है, इसीलिए हर जंग हारता हूँ |
-विशाल
जो किसी के काम ना आ सके उसे आदमी मैं क्या कहूँ,
जो गुजरे खुद की फिक्र में उसे जिन्दगी मैं क्या कहूँ |
-विशाल
बदनसीबी घेर ले तो रख कदम सोच समझ कर ध्यान से,
अंधेरों में तो खुद का साया भी जुदा हो जाता है इंसान से |
-विशाल
हम तो परेशां हैं दुनिया के हालातों से, खुद के लिए हमको कभी गम नहीं होता,
एक खुदा के दर को छोड़ दें तो हमारा सर, किसी की चौखट पर ख़म नहीं होता......
-विशाल
इस जीवन में मैंने अब तक बस यही कमाया है,
कुछ अधूरे ख्वाब और आँखों में पानी पाया है |
-विशाल
Saturday 14 April 2012
जो पसे पुश्त खंजर मारते हैं और सामने शरीफ हैं,
उनसे वो हर हाल में बेहतर जो खुलकर हरीफ हैं |
(पसे-पुश्त------पीठ पीछे
हरीफ---------प्रतिद्वन्दी )
-विशाल
गैरों की बातें क्या करना, उनसे से तो कोई गिला नहीं,
अपने ही चोट दिया करते हैं, अपनों से ही कुछ मिला नहीं|
-विशाल
वो साथ मेरा छोड़ गया मुझको पत्थरदिल कहते हुए,
शायद उसे नहीं पता पत्थर टूटने पर आवाज होती है|
-विशाल
ना हमसफर, ना हमनवां, ना किसी का हमसफीर हूँ,
क्या बताऊँ हाल किसी को मैं, ना रिहा ही हूँ ना असीर हूँ|
-विशाल
भीड़ भी परेशां करती है मुझको और ये खल्वत भी जीने नहीं देती,
तमन्नाओं के मर जाने का ये असर होगा मुझ पर, अब जाना|
-विशाल
खुदी को साथ रख कर तू कैसे खुदा को पायेगा,
इस खुदाई में भला लाया था क्या ले जायेगा|
-विशाल
माना तेरी नजर में मैं एक जर्रा ही सही, कतरा ही सही
मत भूल, इन्ही बूंदों ने ना जाने कितने समंदर भर डाले |
--विशाल
हमने भले ही देख ली हो राह महरोमाह की,
मगर अपने भीतर का अँधेरा कम ना कर पाए|
-विशाल
Monday 9 April 2012
खुदा की बात क्या करना, वो खुद से भी दूर होता है
जब इंसान दौलत या ताक़त के नशे में चूर होता है|
फिर उसके लिए नहीं कीमत किसी भी रिश्ते नाते की,
वो सब अपनों को भुलाकर पूरी तरह मगरूर होता है|
-विशाल
इस दौर में जब उजालों पर हुयी तारीक भारी है,
चिरागों की हिफाजत अब हमारी जिम्मेदारी है|
उनसे क्या गिला वास्ते जिनके ये केवल मिटटी है,
सोचना हमें है क्या करें क्योंकि ये माता हमारी है|
(तारीक---अंधकारमय, अंधियारा)
-विशाल
Saturday 7 April 2012
लोग कहते हैं कि उम्मीद पर कायम है ये दुनिया,
वो क्या करे जिसे अब किसी से कोई उम्मीद नहीं....
-विशाल
यूँ तो कहने को इस जहान में दोस्त हैं सैकडों हजार,
पर मुश्किल में साथ देता है केवल वही परवरदिगार|
-विशाल
किस बात का शिकवा औ' किस से करें गिला,
जो तक़दीर में नहीं, कब किस को है मिला.....!!!
-विशाल
शमां की तक़दीर में बस जलना लिखा था, जलती रही
खुश है वो, कईयों की आस उसकी रौशनी में पलती रही |
-विशाल
इरादे-कोहशिकन हैं तो क्यों कोई शिकवा करें तकदीर से,
गर चाह ले इंसान तो क्या मुमकिन नहीं है तदबीर से |
(इरादे-कोहशिकन--पर्वत को तोड़ने वाला इरादा या संकल्प
तदबीर---मेहनत, कोशिश)
-विशाल
Thursday 5 April 2012
शमां-ए-आरजू को कभी बुझने नहीं देना ए दोस्त,
अंधेरी रात के पर्दों में ही दिन की रौशनी भी है|
- विशाल
जिन्हें रहबर समझा, वही रहजन निकले हैं,
काफिला मंजिल तक पहुँचता भी तो कैसे?
----------------विशाल
निभाने हैं रिश्ते अगर तो अदाकारी आना जरुरी है,
सच्चे प्यार को तो ये दुनिया बनावट समझती है|
- विशाल
Sunday 1 April 2012
जब उम्र फानी है तो मौत से डरना कैसा,
जब जाना है जायेंगे, हर रोज का मरना कैसा |
(फ़ानी -- नश्वर, नाशवान )
-विशाल
दर्द वही बांटेगा सबका जो हर दुःख को सहता है,
छाया करता बादल, सर पर धूप संभाले रहता है|
-विशाल
एक पल ही रुका था मैं पर मंजिल दूर हो गयी
लगता है मैं रुक गया पर रास्ता चलता रहा|
-विशाल
मैं हर बार जान बूझ कर ही चुनता हूँ काँटों भरी डगर,
मुझे चुभेंगे पर औरों के लिए आसां हो जायेगा सफ़र|
-विशाल
अगर मुझसे मोहब्बत है, तो कुछ इस तरह पता देना
सामना जब जब भी हो, बस हौले से मुस्करा देना|