Wednesday 26 September 2012

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अपनों से भी इतना तकल्लुफ, ऐसी भी क्या दुनियादारी
वक़्त पड़े तो आजमा लेना, तब दुनिया भी देखेगी यारी |
----------------------विशाल

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दोबारा जोड़ भले लो पर ज्यादा दिन नहीं चलता,
कपड़ा हो या कि रिश्ता, पैबंद उखड़ ही जाती है|
-------------------विशाल

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क्या अच्छा होता कि सब का सब कुछ होता,
ना कुछ तेरा होता और ना कुछ मेरा होता|
इन रोशनियों ने तो तहजीब ही मिटाकर रख दी,
इससे तो बेहतर था कि हर तरफ अंधेरा होता।

-विशाल
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Tuesday 25 September 2012


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कोई खुदा नहीं कोई बशर नहीं,
मेरा अपना अब कोई दर नहीं |
किसी और से क्यों करूँ गिला,
जब मुझे ही मेरी खबर नहीं |

-विशाल

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जो उम्र भर मेरी छाँव में ही फूला फला है ,
आज मेरी उम्र हो गयी तो काटने चला है |
मैं अपने आपको अपनों से कैसे बचाऊँ,
मेरे लिए तो अब यही सबसे बड़ा मसला है |

-विशाल
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मैं अपने हालात उसको बताता भी तो कैसे,
इस हाल में उसके घर जाता भी तो कैसे |
अन्दर तो मेरे दर्द है, गम है और तन्हाई है,
उसे देखकर भला मुस्कराता भी तो कैसे |
इस भरी दुनिया में मेरा दिल रीता ही रहा,
मैं किसी पर प्यार लुटाता भी तो कैसे |
जो खुद वक़्त के हाथों सताया हुआ बशर है,
वो भला किसी और को सताता भी तो कैसे |
वो रोज किश्तों पर जीता है इस जहाँ में,
उसे गुजरा वक़्त याद आता भी तो कैसे |
ना वो ताख रहे अब और ना ही वो रोशनदान,
परिंदा अपना घोसला बनाता भी तो कैसे |
उसकी जिन्दगी तारीकों की ही एक कहानी है,
वो उम्मीदों के 'चिराग' जलाता भी तो कैसे |

-विशाल



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पहले मुझे तारा कहता है और फिर ही मेरे टूट जाने की दुआ करता है,
यहाँ कौन अपना कह के मार दे खंजर, दिल इसी बात से तो डरता है |

-विशाल
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जो कभी ना पूरे होंगे, वो ख्वाब सजाता क्यों है
अपने आप को इस तरह से बहलाता क्यों है |
तेरे जख्मों की खबर शायद किसी को नहीं,
फिर चोट खाकर तू हमेशा मुस्कराता क्यों है |
वो आकर लौट जाता है कुछ कहे बिना चुपचाप,
मैं समझता ही नहीं, फिर वो यहाँ आता क्यों है|
तेरे दर पर ये बड़ी उम्मीद से आये होंगे,
बेबात इन परिंदों को इस तरह से उडाता क्यों है |
तेरी दिल में क्या है, ये तू ही जाने है मौला,
कश्ती कभी डुबाता तो कभी उतराता क्यों है |
गर मिटा दिया है अपनी यादों से उसको तूने,
फिर उसके नाम का 'चिराग' जलाता क्यों है |
-विशाल


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ना ही खोटा हूँ और ना ही मैं खरा हूँ,
बस आज के हालात का तफसरा हूँ |
किस हाल में हूँ, मुझे खुद को नहीं मालूम,
ना तो जिन्दा हूँ और ना ही मैं मरा हूँ |

-विशाल
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जब साथ चलते हों हमारे यकीं महकम और अमल पैहम
तब भला वो हालात कहाँ जो हो हमें किसी बात का गम |

-विशाल

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क्या था मेरा गुनाह जो सजा मिली मुझको,
रात और दिन ये सवाल मुझको सताएगा |
जानता हूँ कि वो भी भुला नहीं पायेगा मुझको,
बार बार लिखेगा मेरा नाम और फिर मिटाएगा |
जिक्र मेरा कभी करे, ना करे अपनी बातों में,
पर मेरा ख्याल तो उसे भी बार बार आएगा |
क्या सच में अब मुझसे दूर चला जाएगा वो,
दिल तो कहता है कि लौट के फिर से आएगा |
इसी उम्मीद पर अब तलक जिन्दा हूँ मैं, वरना
साथ गुजारा था जो वक़्त बहुत तड़पायेगा |
जिस तरह टूट कर चाहा था उसने मुझको,
कौन भला अब उस शिद्दत से मुझे चाहेगा |
कल को जब रुखसत हो जाऊंगा इस जहाँ से,
कौन बैठा है यहाँ जो मेरे लिए अश्क बहायेगा |
इन ग़मों को कब तक अपने सीने में पालेगा,
जो तू हँसेगा तो फिर जमाना भी मुस्कराएगा |
अंधेरों से लड़ना तो अपना शगल रहा है 'चिराग',
दुनिया को रोशन करने खुद ही को जलाएगा |

-विशाल

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कल तलक जिसके लिए सब कुछ हुआ करता था मैं,
आज मुझको क़त्ल करने का बहाना उसको चाहिए |
जो कभी करता दुआ था दिन रात मेरे साथ की,
आज कहता है कि अब मर जाना तुमको चाहिए |
-------------------विशाल
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ये इक जंग है, इसमें बहुत कुछ खोना पड़ेगा,
पत्थर से टकराना है तो पत्थर होना पड़ेगा|
किसी को भी तूने कभी अपना ना बनाया,
आज नहीं तो कल तुझको यहाँ रोना पड़ेगा|
यूँ तो नींद से तोड़ चुके हैं हम रिश्ता कभी का,
ख्वाब देखने हैं गर, तो कुछ और सोना पड़ेगा|
कुछ बातें रस्मन यहाँ हमें करनी ही पड़ती हैं,
आँखें नम करनी होंगी और गाल भिगोना पड़ेगा|
जिनसे मैंने हमेशा ही खुद को दूर बनाये रखा,
शायद अब उनमें ही मुझे शामिल होना पड़ेगा|

-विशाल

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हाँ, ये सच है कि मैं अक्सर गलतियाँ कर देता हूँ पहचानने में लोगों को,
जमाना गुजर गया, अब तक मैं खुद को ही पूरी तरह कहाँ जान पाया हूँ|

-विशाल
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तुमको ये शिकायत है कि मैं कुछ नहीं कहता,
मेरी ख़ामोशी भी मेरी आवाज है, गर सुन पाओ ।

-विशाल
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इस तरह ना ठुकरा मुझको, मैं किधर जाऊँगा,
राह-ए-सफर में अकेला रहा तो डर जाऊँगा |
अपनी मुट्ठी में ही कैद रहने दे तू मुझको,
वरना खुशबू हूँ, हवाओं में बिखर जाऊँगा |
तेरा होने का अहसास ही मेरे वजूद का वायस है,
छोड़ ना देना तू, तड़प तड़प कर मर जाऊँगा |
मैंने मुस्तकबिल को माझी के हवाले छोड़ा,
गर वो चाहेगा तो हर हाल में तर जाऊँगा |
हाँ, मैं पत्थर हूँ, कब इनकार किया है मैंने,
तुझमें सलीका है तो मैं भी संवर जाऊँगा |
बरसों बीत गए हैं गाँव का आँगन छूटे,
अबके बरस मैं हर हाल में घर जाऊँगा |
मेरे अन्दर एक आग सी रहती है 'चिराग',
देख लेना एक दिन मैं भी कुछ कर जाऊँगा |

-विशाल

बदलते वक़्त में अब ये आलम हुआ,
मेरा निगहबाँ ही मेरा दुश्मन हुआ |
अपनों के ही हाथों में अब खंजर है,
जाने सच है या मुझको भरम हुआ|

-विशाल

ना हो परिंदों का ठिकाना, वो कोई शजर है क्या,
जिसमें अपनापन ना हो, वो मकाँ घर है क्या?
अरसा बीत गया, उसे महफ़िल से रुखसत हुए,
कोई बताये तो जरा, उसकी कोई खबर है क्या?
उसका हौसला देख आकाश भी सर झुका लेता है,
परवाज देख उसकी, ये ना पूछ कि पर है क्या?
रस्ते में उसका साथ न हो, हाथों में हाथ ना हो,
मंजिल मिल भी जाये पर ये कोई सफ़र है क्या?
मेरे दिल तक तो तेरी हर आहट की खबर आती है,
तेरे दिल तक भी मेरे ख़्वाबों की डगर है क्या?

-विशाल

अफसाना ख़त्म हुआ पर गर्द औ गुबार बाकी है,
उन उदास आँखों में अब भी कुछ प्यार बाकी है|
ख्वाब तो कब के हो गए हैं सारे ही चूर चूर,
अब तो बस एक झूठा सा खुमार बाकी है|
बड़ी शिद्दत से जोड़ा था टूटा हुआ रिश्ता मैंने,
पर अभी भी एक रह गयी दरार बाकी है|
यूँ तो अरसा हुआ हमें रहते साथ साथ,
पर बीच में अब भी अना की दीवार बाकी है|
लफ्जों के नश्तर तो वो चलाता है रोज रोज,
अब तो भोंकने को बस कटार बाकी है|
इस मुकाम पर आकर भी मैं हूँ खाली हाथ,
पास कुछ भी नहीं, बस इन्तजार बाकी है|
अब भी कर सकता है रोशन तू किसी का दर 'चिराग',
अब भी तुझमें वो अंगार बाकी है|

-विशाल

शहर के बाशिन्दों ने अब तलक गाँव नहीं देखे,
मुझे बद्दुआ देने वाले तूने मेरे घाव नहीं देखे |
लक्ष्मण ने कभी चेहरा नहीं देखा था सीता का,
और अब के देवरों ने कभी पाँव नहीं देखे |
मैं दुश्मनों से बचने में लगा रह गया उम्र भर,
कभी दोस्तों के छल कपट और दाँव नहीं देखे |

-विशाल

मैं आज भी वही हूँ जो कल तक लगता था तुम्हें,
बस मुझे देखने का नजरिया बदल लिया है तुमने |

-विशाल

 वो गम अब फिर से उभर आया है, जो बरसों से सीने में पला था
वहीँ आकर खड़ा हो गया हूँ मैं, जहाँ से बरसों पहले चला था|
ना जाने क्यों उसको ढूंढने की हर कोशिश नाकाम रही है मेरी,
जो शख्स खुद का वजूद भुला हर लम्हा मुझमे ही ढला था|

-विशाल

Wednesday 12 September 2012

क्या था मेरा गुनाह जो सजा मिली मुझको,
रात और दिन ये सवाल मुझको सताएगा ।
जानता  हूँ कि वो भुला नहीं पायेगा मुझको,
बार बार लिखेगा मेरा नाम और फिर मिटाएगा ।
जिक्र मेरा कभी करे, ना करे अपनी बातों में,
पर मेरा ख्याल तो उसे भी बार बार आएगा ।
क्या सच में अब मुझसे दूर चला जायेगा वो,
दिल तो कहता है कि लौट के फिर से आएगा ।
इसी उम्मीद पर अब तलक जिन्दा हूँ मैं, वरना 
साथ गुजरा था जो वक़्त बहुत तड्पाएगा ।
जिस तरह टूट कर चाहा था उसने मुझको,
कौन भला अब उस शिद्दत से मुझे चाहेगा ।
कल को जब रुखसत हो जाऊंगा इस जहाँ से,
कौन बैठा है यहाँ जो मेरे लिए अश्क बहायेगा ।
इन ग़मों को कब तक अपने सीने में पालेगा,
जो तू हँसेगा तो जमाना भी मुस्कराएगा ।
अंधेरों से लड़ना तो अपना शगल रहा है 'चिराग',
दुनिया को रोशन करने खुद ही को जलाएगा ।
------------------विशाल







किताबों में बहुत खूबसूरत लगते हैं जो अफ़साने,
हकीकत में तो वो किस्से बहुत बदरंग होते हैं ।
जो दम भरते हैं कि चलेंगे साथ रात दिन अपने,
जरुरत आन पड़ती है तो कहाँ पर संग होते हैं ।
--------------------विशाल













कुछ तो हुआ है, कहीं कोई तारा टूटा क्या,
किसी बेबस दुखिया का सहारा टूटा क्या ।
आज तो फिर से आसमान भी रो पड़ा है,
कहीं पर कोई वक़्त का मारा टूटा क्या ।
अब कभी न बज सकेगी वो धुन जीवन में,
कभी बज सका है यहाँ इकतारा टूटा क्या ।
-----------------विशाल