Sunday 7 April 2013


जाड़ों में जो सुकून देती है, गर्मियों में झुलसा देती है वही धूप,
सच ही तो है कि लोग नहीं बदलते बस हालात बदल जाते हैं।

----------------------------विशाल

आ आज फिर से इन्हें कुछ नया करने का जतन करते हैं,
कपड़ा हो या रिश्ता, पुराना हो तो सलवटें पड़ ही जाती हैं।

-----------------------विशाल

चलते चलते कई बार ठहर जाने को जी चाहता है,
इस तन्हाई से घबरा कर मर जाने को जी चाहता है।
दिन भर जिन लोगों से बचने के जतन करता हूँ,
शाम होते ही पास उनके घर जाने को जी चाहता है।
खुद की निगाहबानी का अहसास बड़ा सुकूँ देता है,
कभी कभी इसीलिए डर जाने को जी चाहता है।
यूँ तो कभी भी मैंने अपने जीने का तरीका ना देखा,
कुछ रोज से जाने क्यों सँवर जाने को जी चाहता है।
मेरे जाने के बाद भी ये दुनिया मुझको भूल ना पाए,
जाने से पहले कुछ ऐसा कर जाने को जी चाहता है।

---------------------विशाल



आलिम तो महफ़िलों में चुपचाप बैठे हैं और जाहिल बात बेबात पर गाल बजाते हैं,
जैसे मोती सीप के अन्दर खामोश रहता है और रेत के जर्रे चमकते नजर आते हैं।

-----------------------------------विशाल

मुझे मालूम था कि वो मेरा साथ ना दे सकेगा बहुत दूर तक,
जब से आया हूँ मैं दुनिया में, मुसाफिरे-दश्ते-अलम रहा हूँ।

---------------------------विशाल




उसके छोड़ जाने के बाद मुद्दतों तक मैं अकेला ही रहा,
अब मैंने सन्नाटों से बात करने का हुनर सीख लिया है।

---------------------------विशाल




औरों में कमियां निकालने से पहले मैं एक बार आइना देख लेता हूँ,
कितना भी कोशिश कर लूं, कुछ दाग, धब्बे हर बार दिख ही जातें हैं।

--------------------------------विशाल



बखूबी जानता हूँ मैं कि वो हमेशा से दुश्मन रहा है मेरा,
पर खाली हाथ कैसे लौटा देता दरवाजे पर आये हुए को।

-------------------------विशाल

ये कैसे कह दिया तुमने कि मुझे मजलूमों के दर्द का एहसास हो नहीं सकता,
कहाँ लिखा है कि ये जानने को आग में हाथ दिया ही जाये कि वो जलाती है।

------------------------------------विशाल

जब मेरा जलाया चिराग ही मुझे रौशनी ना दे सका,
मैं कैसे कोई उम्मीद करता फलक के चाँद-तारों से।
अपना खून पिलाकर पाला गया बेटा ही जब छोड़ गया,
तो फिर क्यों कोई रंज रखूं मैं दुनिया की बहारों से।

------------------------विशाल

Wednesday 3 April 2013


जिस शख्स को जीते जी इस जहाँ में कभी चिन्दियाँ भी ना नसीब थीं,
उसीके जनाजे पर दुशाले डाल जन्नत का टिकट पक्का कर रहे हैं लोग।

----------------------------------विशाल

जब मेरा जलाया चिराग ही मुझे रौशनी ना दे सका,
मैं कैसे कोई उम्मीद करता फलक के चाँद-तारों से।
अपना खून पिलाकर पाला गया बेटा ही जब छोड़ गया,
तो फिर क्यों कोई रंज रखूं मैं दुनिया की बहारों से।

------------------------विशाल

यूँ तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए ख़ुशी के पैमाने अलग अलग होते हैं और उसके लिए ख़ुशी के कारण भी अलग अलग होते हैं। पर मुझे लगता है कि जितना आनंद, जितनी प्रसन्नता, जितना सुख प्रकृति के नजदीक मिलता है, किसी और बात में नहीं। चिड़ियों का फुदक फुदक कर आपके द्वारा डाले गए दाने खाना, चिड़िया द्वारा अपने छोटे छोटे बच्चों की चोंच में दाना डालना, गिलहरी का आपके पास पड़े किसी खाद्य पदार्थ को टुकर टुकर देखना, बिल्ली का अपनी चमकीली आँखों से आपको घूरना, किसी अलसाए कुत्ते का खटपट होने पर आपको जरा सा मुंह उठाकर देखना, पिल्लों का एक दुसरे के ऊपर उछल कूद करना और आपके द्वारा पुचकारने पर सबके सब का पूँछ हिला हिला कर आपके आगे पीछे घूमना, छोटे से बछड़े का अपनी माँ के इर्द गिर्द उछलना कूदना, बकरी के छौने का दौड़ भाग करना, बन्दर के छोटे छोटे बच्चों की शैतानियाँ, किसी छोटे बच्चे का अपनी माँ की गोद से आपकी और विस्मय से देखना, आपके मुस्कराने पर मुस्कराना और अपनी नन्हीं नन्हीं उँगलियों से आपकी उँगलियों को जकड लेना, किसी फूल का हवा में लहराना, किसी पौधे का हवा के साथ साथ झूमना, शाम को नदी किनारे बैठ लहरों के संगीत को सुनना और ऐसा भी बहुत कुछ और। इनसे ज्यादा सुकून किसी में नहीं और कहीं नहीं ।

- विशाल






















किसी की हसरतों में शामिल नहीं मैं तो ताज्जुब कैसा,
बहुत बार तो खुद मुझको भी मेरी दरकार नहीं होती।

-----------------------विशाल

ख़ुशी देते हैं ये ख्वाब, मुझको भी खुश रह लेने दो ना कुछ देर तलक,
ये तो मैं भी जानता हूँ कि ख़्वाबों का हकीकत से वास्ता कुछ भी नहीं।

------------------------------विशाल

हर बार मुझको सजा दी गयी उन खताओं की जो मैंने कभी की ही नहीं,
मुझसे छीन ली गयी मेरी वो जिन्दगी, जो अभी तलक मैंने जी ही नहीं।

-------------------------------विशाल

बड़ी मोहब्बत से मुझको खुद का आइना कहता था वो,
इस तरह मुझको चूर चूर कर जाएगा, क्या पता था, वो ।

-------------------------विशाल


इस तरह ना जा छोड़ के मुझको, बिखर जाऊँगा
मौत के आने से बहुत पहले ही मैं मर जाऊँगा।
तेरा साथ ही अब तक मेरी रवानगी का वायस था,
जो तू चला गया तो हमेशा के लिए ठहर जाऊंगा।
जानता हूँ कि यहाँ मेरा साथ कोई नहीं देने वाला,
मैं भी अब सब छोड़छाड़ के खुदा के घर जाऊँगा।

----------------------विशाल


हर व्यक्ति चाहता है कि उसे मिल जाये मोक्ष,
और छूट जाये उसका ये आने जाने का क्रम|
पर प्रभु सदा यही कहता है मेरा मन,
कि ना मुझे चाहिए मोक्ष ना अमरत्व|
बस मुझे तो दे दो तुम यही एक वर,
कि मैं बार बार आऊं इस धरा पर|
इसी के लिए जियूं इसी के लिए मरूं,
इसी पर अपना सर्वस्व न्योछावर करूँ|
प्रलय काल तक यही क्रम चलता रहे,
और मातृभूमि हेतु मेरा दम निकलता रहे|
बस यही मेरे जीवन की एकमात्र अभिलाषा है,
प्रभु ! तुम इसे पूरा करोगे यही आशा है|

-----------------विशाल


ये तो मैंने भी सुना है कि किसी शै का नाम ख़ुशी भी है,
क्या बला होती है ये, मुझको ये जानना बाकी है अभी ।

-------------------------विशाल

ये तो मैंने भी सुना है कि किसी शै का नाम ख़ुशी भी है,
क्या बला होती है ये, मुझको ये जानना बाकी है अभी।

-------------------------विशाल

मैं गया तो था हर बार गुलशन तक गुलों की ही तलाश में,
पर पकड़ के मेरा दामन काटों ने मुझको अपना बना लिया।

--------------------------विशाल

Tuesday 19 March 2013


मैं जो कुछ लिखता हूँ यहाँ, वो मेरे दिल की आवाज होती है
लोग क्या सोचेंगे मेरी बातों पर, ये मैं कभी सोचता ही नहीं।

 -विशाल

Friday 15 March 2013


मैंने अपने हाल-ए-दिल को अश्कों की इबारत में ढाला था,
पर जिन्हें अपना समझता हूँ उन्हें इसका तर्जुमा मालूम नहीं।

--------------------------विशाल

तरक्की के इस दौर में ऐसा क्या है जो नहीं होता,
अजीब ये है कि बस आदमी ही इंसाँ नहीं होता।

------------------------विशाल

मेरी मुश्किलों में सब मेरा साथ छोड़ गए तो ताज्जुब कैसा,
मैंने पतझड़ में पत्तों को भी शाखों से अलग होते हुए देखा है।
मैं टूट जाता हूँ, बिखर जाता हूँ ऐसे में तो कोई नयी बात नहीं,
मैंने पत्थरों को भी वीराने में सिसकते हुए, रोते हुए देखा है।

----------------------------विशाल

जितने लुटेरे थे यहाँ, सब के सब मोहतरम हो गए,
चम्बल के डकैत लुटियनवासियों के हमदम हो गए।
मैं ताउम्र लोगों को अपना बनाने की जुगत में रहा,
पर जिन्हें भी अपना समझा, वही मेरे दुश्मन हो गए।

-------------------------विशाल

वो अफ़साना अब बहुत पुराना हो गया है।
उससे मिले हुए तो एक जमाना हो गया है,
उसकी जिन्दगी में मेरे लिए कोई जगह नहीं,
अब वहां पर गैरों का आना जाना हो गया है।

------------------विशाल

मासूमों के खून से सान रखे हैं जिन्होंने अपने हाथ,
वो लोग भी जाते हैं हज पर, शैतान को पत्थर मारने।
जिन्होंने लोगों को आंसुओं के सैलाब में डुबाये रखा ताउम्र,
वो सबसे पहले पहुँचते हैं भगवान के दर, खुद को तारने।

-------------------------विशाल

औरों के कितने ही मसलों का जवाब बन जाता हूँ मैं ,
जब खुद की बात आई तो मैं बस एक सवाली ही रहा,
सबके दामन में खुशियाँ भरने का एक जूनून था मुझे,
मेरा दामन हमेशा की तरह इस बार भी खाली ही रहा।

------------------------विशाल

कौन कहता है कि लफ्जों के बिना बहुत मुश्किल है किसी की बातों को सुनना,
मैंने देखा है नदियों,हवाओं,परिन्दों से लेकर दरख्तों तक को कुछ कहते हुए।

---------------------------------विशाल

मत कहो पत्थरदिल इन कातिल हुक्मरानों को,
ये मुझे पत्थरों की बेहद तौहीन लगती है,
उनमें तो कोई जज्बात बाकी ही कहाँ है अब,
पत्थरों के बीच से तो गंगा निकलती है।

---------------विशाल

जिन्हें कभी अपना समझा ही नहीं हमने,
वो गर क़त्ल भी कर दें तो रंज नहीं होता ,
तुम्हें तो आज तक अपना समझते आये हैं,
जब तुम खंजर मारते हो पीठ पर, बड़ा तकलीफ होती है।

--------------------विशाल

मेरे कातिलों के गुनाह तो कभी के माफ़ कर दिए मैंने,
वो उनसे लाख दर्जे बेहतर हैं जो जीते जी मार देते हैं।

----------------------विशाल

तुम्हारे मकान का तो बस छज्जा ही गिराया गया है तो कलपते हो,
कभी उन मासूम परिंदों के बसेरों को भी याद करो जो तुमने तोड़े थे।

--------------------------------विशाल

जिसकी मूरत को सीने में सजाये रखता था मैं हमेशा दिल-ओ-जान से,
बुतपरस्त काफिर कह कर वही क़त्ल कर गया मेरा बड़े इत्मीनान से।

-----------------------------------विशाल

दुनिया वालों से तो अपना हर जुर्म छुपा ले जाता हूँ मैं,
पर मेरे अन्दर ही कोई रहता है जो मुझे जीने नहीं देता।

-----------------------विशाल

अपनी आँखों में बसे सुनहरे ख़्वाब तभी के तोड़ दिए मैंने,
जब झाँका था भूख से बिलखते बच्चों की खाली आँखों में।

---------------------------विशाल

टूटे सपने, टूटा दिल है , बंद गली और राह अँधेरी,
इन लफ्जों में सिमट गयी है जीवन भर की गाथा मेरी।

-------------------------विशाल

कुछ दिनों तक यहाँ से जाना बहुत अच्छा रहा,
कुछ पुराने शहरों में ठिकाना बहुत अच्छा रहा।
खुद से भी मुलाक़ात बाकी थी काफी समय से,
अपने ही कुछ और पास जाना बहुत अच्छा रहा।

--------------------विशाल

दुनिया से तो जीत गया मैं पर खुद से ही हार गया,
और कोई मुझे क्या मारता, मेरा 'मैं' मुझको मार गया।
अपने लिए ही जीने वाला उलझा रहा इसी दुनिया में,
औरों के हित जीने वाला ही भवसागर के पार गया ।

--------------------विशाल

मैं जानता हूँ कि उससे मिलना मेरी तकदीर में नहीं,
कुछ खुशफहमियां ज़िंदा रहने के लिए जरुरी हैं मगर।

-----------------------विशाल

इससे पहले कि किसी अपने के दिल से उतर जाऊं,
मुझ पर ये इनायत कर देना मौला कि मैं मर जाऊं।

-------------------------विशाल

मैं कब ये मान बैठा हूँ कि वो सितमगर नहीं है,
वो भले ही समझता हो कि मुझको खबर नहीं है,
इससे ज्यादा शराफत की उम्मीद क्या रखूँ मैं,
ये क्या कम है कि हाथ में उसके पत्थर नहीं है।

--------------------विशाल

ज़िंदा रहने की जद्दोजहद में कट गयी मेरी उम्र तमाम,
किसी ने जीने ना दिया और किसी ने मरने ना दिया।
एक वक़्त में मै डूब गया था आंसुओं के सैलाब में,
जिन्हें अपना समझता था उन्होंने ही उबरने ना दिया।

------------------------विशाल

उसने तो अपना जिस्म ही बेचा था ये सोचकर कि फाका टल जाए,
यहाँ रूह तक बेच देते हैं लोग कि किसी तरह मतलब निकल जाए।

--------------------------------विशाल

इस नए दौर रोज रोज रची जाती है नयी नयी किस्मों की रामायण,
राम को वनवास भेजने की जुगत भिड़ाते हैं अब सीता औ लक्ष्मण।
उस दौर में तो मुमकिन था राम के लिए राक्षसों को मार गिराना ,
आज तो खुद राम में ही कई बार नजर आने लग जाता है रावण।

------------------------------विशाल

मेरी तकलीफों को देखकर ये आसमाँ भी रोया है बहुत बार,
जिन्हें अपना समझता हूँ, जख्मों को उधेडा ही किये हैं वो।

-----------------------विशाल

अब तो लोगों ने इस दुनिया को बाजार बना डाला है,
सबको सामान और खुद को खरीददार बना डाला है।
पर मैं खुद को आदी ही नहीं बना पाया हूँ इस दौर का,
इस भागती जिन्दगी ने मुझको बीमार बना डाला है।

-----------------------विशाल

मैंने देखा है रौशनी का एक कतरे को भी अंधेरों को हराते हुए,
फिर इस बात पे रंज क्या करना कि मेरी जंग में मैं अकेला हूँ।

-------------------------विशाल

जिसने आँखों को ख्वाब दिए थे, वो ही इनको जला गया,
अब तक के अपने जीवन में, मै बार बार ही छला गया।
जो दुनिया की रीत रही है, मैं भी उसका एक हिस्सा हूँ,
कि कोई तो आया दुनिया में और कोई यहाँ से चला गया।

--------------------------विशाल

मेरे होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला इस दुनिया को,
मेरे अपनों ने तो कभी का बिसरा दिया है मुझे अपनी यादों से...

- विशाल

मैं यहाँ रोज बा रोज जीने की जद्दोजहद में उलझा रह जाता हूँ,
लोग बरसों तक का कैसे सोच लेते हैं, समझ ही नहीं पाता हूँ।

- विशाल

मुझको चोट देते जाने से तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला
एक जमाने से मैं आदी हूँ ग़मों का, इन्हें ही ओढ़ता बिछाता हूँ

- विशाल

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तू मुझे क़त्ल करने का सामान क्यों जुटाता है,
मेरे अपनों ने तो मुझे कभी का ही मार दिया है।

- विशाल
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