Monday 30 July 2012

हर दर्द को दिल से मिटाया नहीं जाता,
कुछ दर्द तो दिल से लगाने के लिए हैं|
खुद को मशरूफ रखने के सारे ये जतन,
बस उसकी यादों को भुलाने के लिए हैं|
---------------विशाल

Saturday 28 July 2012


चोट पर चोट देती है मुझको ये दुनिया,
तबाही में शायद कुछ कमी रह गयी है|
ना जाने क्यों इसे ये भी बर्दाश्त नहीं है,
जो होठों पर जरा सी हँसी रह गयी है|
 -------विशाल

मैं किसी के प्यार के काबिल नहीं रहा
उम्मीदों आरजुओं का साहिल नहीं रहा
और तो सब कुछ वैसा का वैसा ही था
बस शायद उसके पास दिल नहीं रहा|
--------------विशाल

वो पास आते आते हमसे दूर हो गए,
ख्वाब जिन्दगी के चकनाचूर हो गए|
एक दौर में जो हमारे रहम ओ करम पर थे,
कुर्सी मिली तो वही लोग मगरूर हो गए|
इस दौर की दास्तानें भी अजीब ओ गरीब हैं,
कल के मुजरिम आज सब हुजूर हो गए|
खुदगर्जी के चलते जिनको रिसने दिया कभी,
वो घाव अब सब के सब नासूर हो गए|
हम नींव के पत्थर बन कर ही खुश रहे,
ऐसे भी हैं जो बुर्ज के कंगूर हो गए|
कुछ लोग खुद को गला कर भी रह गये गुमनाम,
कुछ भांड नाच गा कर ही मशहूर हो गये|
--------विशाल

किसी दामन से उलझ जाऊं, नहीं मैं वो खार नहीं
एक ऐसा फूल हूँ जो किसी के गले का हार नहीं|
-----------------विशाल

ये सच है कि सूरज की तरह हर शाम ही ढलना होता है हमें,
उसके पहले लेकिन हर हाल में दूर तक चलना होता है हमे|
-----------------------विशाल

मैं समन्दर हूँ, मुझमे जर्फ़ है, इसीलिए खामोश रहता हूँ,
दरिया होता तो बेबजह उछलता रहता और आवाज करता |
(जर्फ -----गंभीरता, सहनशीलता)

----------विशाल

कोई सूरत ही नहीं मेरे टूटे दिल के जुड़ पाने की,
कहीं चीथड़ों को भी कभी किसी ने रफू किया है|
-------------------विशाल

ख़्वाबों में सही उससे मुलाकात होती तो होगी,
नज़रों से ही सही कभी बात होती तो होगी |
ये माना कि उससे तेरा मिलना मुश्किल है,
पर हर कदम पर वो साथ होती तो होगी |
नसीब में तेरे तपती लू के थपेड़े ही सही,
कभी तारों भरी चांदनी रात होती तो होगी |
जिन्दगी अगर है एक बाजी शतरंज की,
मुसलसल इसमें शह और मात होती तो होगी |
दिल भलें ही खाली हो गया हो उसका,
पर आँखों से बरसात होती तो होगी |
कोई चले ना चले साथ तेरे इस जहां में,
हर कदम संग ये कायनात होती तो होगी |
----------------विशाल

जाने क्या ढूंढती रहती हैं हरदम आँखे उसकी,
कुछ ना कुछ यक़ीनन उसने खोया तो होगा |
नाम आँखों से लिखा था जो आखिरी ख़त उसको,
पढ़ते हुए अश्कों से उसने भिगोया तो होगा |
खुली पलकों से ख्वाब देखना सब के वश की बात नहीं,
जाहिर है कि वो रात भर सोया तो होगा |
यूँ तो मेरी मौत का ख्वाहिशमंद रहा है वो,
पर दिखावे के लिए ही सही, वो रोया तो होगा |
वही पाते हैं हम जो हमने कभी दिया होता है,
जो काट रहा है, कभी उसने ही बोया तो होगा |
उसी के दम से रोशन है ये बुझता हुआ 'चिराग',
सूखी बाती को उसने कभी तेल में डुबोया तो होगा |
-------------------विशाल



मैं हूँ भी या नहीं, पता ही नहीं मुझे,
पर अभी भी मेरी दास्तान बाकी है |
सब तो छीन लिया दुनिया ने मुझसे,
बस जमीन और आसमान बाकी है |
कैसे छोड़ दूँ अभी इस लड़ाई को मैं,
बरी हुआ हूँ पर इल्जाम बाकी है|
और तो कुछ भी नहीं तेरा पास मेरे,
हाँ, उन लबों का निशान बाकी है |
उनकी गवाहियाँ कसूरवार ठहरा दे मुझे तो क्या ,
मेरे दिल का तो बयान बाकी है |
मैं ना रहा तो भी दुनिया चलती रहेगी,
तेरे लिए अभी पूरा जहान बाकी है|
-------------विशाल

लोग आज सब के सब घबराने लगे हैं,
अब तो अपने ही हमको आजमाने लगे हैं|
कभी बाप की त्योरी भी बेटे को डराती थी,
अब बेटे ही बाप को आँखें दिखाने लगे हैं|
हम वक़्त की रफ़्तार के साथ बहते रहे हैं,
पता ही नहीं कहाँ आ के ठिकाने लगे हैं|
मुजरिमों की हिमाकत तो देखिये जरा,
मुन्सिफों को ही आँखें दिखाने लगे हैं|
मेरी मौत का बेसब्री से इन्तजार है उन्हें,
देखिये ना अभी से फातिहा गाने लगे हैं|
नए दौर में नए रिश्ते बनाने की होड़ में,
रिश्ते खून के सब के सब धुंधलाने लगे हैं|
-----------------विशाल
आज फिर से गुजरा जमाना याद आया,
एक भूला बिसरा सा तराना याद आया |
घर की मुंडेर पर बैठी चिड़ियाँ याद आयीं,
और उनका चहचहाना याद आया|
एक पत्थर से ही तोड़ लेते थे आम हम अमराई में,
फिर से अपना वो निशाना याद आया|
कुछ कह पाने की हिम्मत जुटाना मुश्किल था,
बहानों से उसके घर आना जाना याद आया|
पापा की घूरती आँखों से बचाने के लिए,
माँ का झट से आँचल में छुपाना याद आया|
आज जब फुर्सत में बैठे सोचने कुछ एक पल,
ना जाने क्यों वो बचपन सुहाना याद आया|
इस नयी दुनिया के नए रंगों से वाकिफ नहीं हम,
इसीलिए शायद आज सब कुछ पुराना याद आया|
--------------------विशाल

Friday 27 July 2012


पोखरों तक नहीं पहुंचे, वो समुन्दर की बात करते हैं,
मुझे बेघर करने वाले ही अब घर की बात करते हैं|
भरोसा करें भी तो किस पर, कुछ समझ नहीं आता
दवा देने ही वाले ही अक्सर जहर की बात करते हैं |
जले में नमक छिडकने वाले वही लोग हैं शायद, जो
कफस में बेबस परिंदे के आगे पर की बात करते हैं|
बलात्कार, क़त्ल-ओ गारद, वहशत और दरिंदगी
ये अखबार शायद किसी जानवर की बात करते हैं|
कई बार मारा गया हूँ पर अब तलक जिन्दा हूँ मैं,
मेरे चाहने वाले इसलिए अब मेरे सर की बात करते हैं|

----------------------विशाल

तू खूब सोच समझ ले पहले, फिर मैं तो मिटा ही दूंगा अरमां,
कि शोलों को बुझाने की कोशिश में, उठता है कुछ और धुंआ |
----------------------विशाल

जिनके लिए खुद को कुर्बान कर दिया, अब वो ही मेरी मौत का अरमान रखते हैं
हम भी सख्तदिल हो गए जख्मों के सिलसिले से, हथेली पर ही अपनी जान रखते हैं|
 ------------------विशाल

ऊपर वाले को भी नहीं पसंद सख्ती बयान में,
इसीलिए नहीं दी उसने कोई हड्डी जुबान में|
जब भी कुछ बोल, बड़ा सोच समझ कर बोल,
ये वो तीर है जो कभी लौटता नहीं कमान में|
अपनी हर बात को ये दुनिया गौर से सुने-माने,
आ चल पैदा करें वो खनक अपने ईमान में|
----------------विशाल

कभी तो उसको ये अहसास होगा कि हमें खोकर उसने बहुत कुछ गंवाया है|
आखिर हमें ठुकरा नया रिश्ता उसने नफा नुकसान देखकर ही तो बनाया है|
----------------------------विशाल

मौत ने कब किसको बख्शा है, इससे किसकी रिश्तेदारी है
गर आज मेरे पास आई है तो कल परसों तुम्हारी बारी है|
जब जानते हैं हम कि इसे आना ही है हर हाल में एक दिन,
तो डरना कैसा, आ जाये, अपनी चलने की पूरी तैय्यारी है|
-----------------------विशाल

जहाँ कभी सुख होता है, वहां कभी गम भी होता है
जहाँ बजती हैं शहनाइयाँ, वहाँ मातम भी होता है|
मुझे पत्थर समझने वालों कभी तो गौर से देखो,
मेरी आँखें भी रोती हैं, मेरा दिल नम भी होता है|
--------------------विशाल

जैसे जैसे किसी बच्चे को शऊर होता जाता है,
वो जाने अनजाने खुदा से दूर होता जाता है|
बचपन में चाहता है वो रहें सब हरदम साथ,
और बड़ा होता नहीं कि मगरूर होता जाता है|
-----------------विशाल

जब उसने चाहा था मुझे, मैं जो तब था वही अभी भी हूँ,
फिर मुझे बदलने की ये जिद क्यों है, मैं समझा ही नहीं|
----------------------विशाल

अभी से किस तरह से कह दूँ मैं उसको बेवफा,
मंजिल तो अभी दूर है, अभी है फ़क़त रास्ता|
--------------विशाल

जिसे शिद्दत से रफू किया था, वो रिश्ता फिर टूट गया
सच में कहाँ जुड़ पाता है कांच, जो एक बार फूट गया|
-----------------------विशाल

हर बार की तरह रिश्तों की दुहाई देगा,
वो फिर मुझे किसी चौराहे पे ला ही देगा|
पत्थर के शहर में हैं पत्थर के ही हैं लोग,
यहाँ किसी को भला क्या सुनाई देगा|
बिक जाते हैं जहाँ सब ईमान औ धर्म,
वहां मेरे हक में है कौन जो गवाही देगा|
अब तो रीता ही रखा है उसने मुझको,
अब जब देगा तो सीधे रिहाई ही देगा|
जीवन में तो अंधेरों ने पीछा नहीं छोड़ा,
कब्र पर तो 'चिराग' कोई जला ही देगा|
-------------विशाल

इन साजिशों में हाथ किसी आश्ना का है,
गैरों को कब पता कि कहाँ चोट होती है मुझे|
----------------विशाल

मुझको ही तलब का ढब नहीं आया,
वरना वो मेरे पास कब नहीं आया|
मैं जब कभी भी गया खुदा की चौखट पर ,
वो समझ गया ये बेसबब नहीं आया|
------------विशाल

आज मेरे वजूद से भी शिकायत है इसे,
जब नहीं होऊंगा तब यही याद करेगी |
आज ठुकराती है हर मोड़ पर बेदर्दी से,
कल यही दुनिया मेरे लिए फ़रियाद करेगी|
--------------विशाल

बुरे वक़्त में कौन किसका साथ देता है भला,
पत्ते भी तो पतझड़ में साथ छोड़ देते हैं शजर का|
-----------------विशाल

इस दौर के हालातों का एक तब्सरा हूँ,
दिखने में खुश हूँ पर अन्दर से डरा हूँ |
माजरा कुछ भी हो, मैं चुप ही रहता हूँ,
शक होता है कि जिन्दा हूँ या मरा हूँ|
-------------विशाल

वैसे मुझको हर दम बहुत अकेला सा लगता है,
पर शाम ढले इस सूने घर में भी एक मेला सा लगता है |
दुनिया भर की यादें कहाँ कहाँ से मुझसे मिलने आती हैं,
उनमें से कुछ राहत देती हैं और कुछ बेहद तड़पाती हैं |
-------------------विशाल

जो छोड़ जाता है उससे मोहब्बत कैसी,
जो पास में आता है उससे नफरत कैसी |
जब जानते हैं, क्यों हम पेशोपेश में जियें
मौत आने के लिए है, जान जाने के लिए |
---------------विशाल

अब दिल नहीं लगता है दुनिया में,
खुदाया पास अपने अब बुला ले तू|
मेरे गुनाहों की कुछ खबर तो दे मुझे,
बिना बात के तो यूँ ना सजा दे तू |
--------------विशाल

किसी से क्या कहूँ, अब कुछ समझ ही नहीं आता,
जिसे पाला अपना समझ, वो ही मुझको डस गया|
हम रावण से लड़ने में उलझे रहे जीवन भर,
जिसे राम समझे थे, वही जा लंका में बस गया|
------------------विशाल

परिंदे भी हमेशा कहाँ रह पाते हैं आसमानों में
उन्हें भी लौटना ही पड़ता है अपने आशियानों में|
जो आज ऊपर है, कभी नीचे भी आएगा,
क्यों ये समझ आती नहीं है पर हम इंसानों में|
------------------विशाल

ये जिन्दगी क्या है, बस एक कशमकश का नाम है,
मौत कुछ और नहीं, इस अफ़साने का ही अंजाम है|
 ---------------विशाल

एक जरा सी बात क्या हुयी कि बरसों का याराना गया
इससे तो दुश्मन ही बेहतर जो आज भी पहचानते हैं मुझे|
--------------------विशाल

कौन रोता है उम्र भर किसको, आदमी जल्द ही सब कुछ भुला देता है
पर इन्हीं खुदगर्जों के लिए इंसान, अपना सारा जीवन गवां देता है|
------------------विशाल

जब भी कभी हमें कुछ काम अपने दोस्तों से आ पड़ा,
समझ गए हम कि उनके बेवफा होने का वक़्त आ गया है|
अब सारे रिश्ते नाते, यारी दोस्ती बस कहने भर की ही है,
पता ही नहीं चलता कि कौन कब किसको कहाँ खा गया है|
------------------------विशाल

तुम हाथ थाम लेते गर तो हालात बदल सकते थे,
माना दुश्वारियां थीं पर हम साथ में चल सकते थे|
अब तो बस ये अँधेरी राहें ही हैं मुस्तकबिल मेरा,
तुम साथ होते तो इन पर 'चिराग' जल सकते थे|
----------------विशाल

मेरा मसीहा, मेरा कातिल, कोई और नहीं मैं खुद ही हूँ
चाहे जहर हो, चाहे इक्सीर, कोई और नहीं मैं खुद ही हूँ|
----------------------विशाल

जब तक जिए यहाँ, जिन्दादिली से जिए,
मेरे मरने का ए दोस्त मातम ना करना |
हर फर्ज अपना पूरा कर के ही चला हूँ,
आंसू बहाकर मेरा वकार कम ना करना|
----------------विशाल

जो ज़माने में कई बार मात खाते हैं, वही एक दिन यहाँ पर जीत जाते हैं
जो कभी हौसला ही नहीं कर पाए, उनके हिस्से कैसे कोई मकाम आये|
------------------------------विशाल

यही हाल है इस दुनिया का, किसी की मेहनत किसी का फल,
इसीलिए बोकर फसल, मैं नहीं सोचता, कौन इसे काटेगा कल |
-----------------------विशाल

कई बार जानबूझ कर फरेब खाना अच्छा लगता है,
यूँ ही अपने आप में मुस्कराना अच्छा लगता है|
जानता हूँ अब उसकी जिन्दगी में कोई जगह नहीं मेरी,
पूछता हूँ हर बार, क्योंकि उसका हर बहाना अच्छा लगता है|
-------------------------विशाल

हम गैरों की बात क्या करें, हमें तो दोस्त ही आजमाते हैं
लोग काँटों से जख्मी होते हैं, हम फूलों से जख्म खाते हैं |
------------------------विशाल

मुझे भुला दो, अब मेरी अलग ही दुनिया है,
कुछ मजबूरियां ही होंगी, जो उसने ये कहा है
दूर हो जाऊंगा पर उसे भुला नहीं सकता,
कहीं जिस्म भी कभी रूह से जुदा रहा है|
-----------------विशाल

ये मत भूल कि गर तू शोले को हवा देगा,
वो कभी तेरे ही आशियाने को जला देगा|
जो अपने सिवा कभी कुछ सोच ही नहीं पाया,
तेरे जैसा शख्स किसी और को भला क्या देगा|
-------------------विशाल

 जो औरों से उम्मीदें रखते हैं, अक्सर ख्वार होते हैं
यहाँ जिन्हें हम रहबर समझते हैं, वही बेकार होते हैं|
--------------------विशाल
ख्वार----------अपमानित, तिरस्कृत, जलील
रहबर----------रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक


माना तेरे मुक़द्दर में कांटे ही कांटे हैं, पर ये दिन भी गुजर जायेंगे, तू इस तरह से गम ना कर
ये कुदरत किसी एक की नहीं, तुझ पर भी मेहरबाँ होगी, तेरा भी दामन फूलों से जाएगा भर|
------------------------------------विशाल

जब जब भी मैंने आँगन में चिराग जलाया है, आसमान में भी चाँद निकल आया है
आज घर में अँधेरा है तो चाँद सितारों ने भी साथ ना देने की कसम खायी है लगता|
---------------------------------------विशाल

छुप कर वार करने वाले, तू ये समझ ले कि ये कोई अच्छा काम नहीं होता,
खुद को चाहे जो समझा पर आड़ से घात करने वाला हर कोई राम नहीं होता|
--------------------------------विशाल
उम्मीदों आरजूओं का साहिल नहीं रहा,
शायद अब मैं प्यार के काबिल नहीं रहा | 
या तो मुझमें पहले सी कोई बात नहीं रही,
या उसके पास ही अब वो दिल नहीं रहा |
-------------------विशाल

क्यों फिक्र करूँ इसकी कि मौत के बाद मेरा होगा क्या,
मैं नहीं रहूँगा देखने को, चाहे कोई जला दे चाहे दे दफना|
-----------------------विशाल

कहीं कोई भी अपना नहीं, जाने कैसा हो गया है ये जहाँ
किसी को फुर्सत ही नहीं कि देख सके हमारा दर्दे-निहाँ|
---------------------विशाल
मैं था इस बात से अलमस्त कि चोट औरों को है पहुंचायी,
अब जाना, जिसे मैं चाक कर बैठा, वो मेरा ही गिरेबाँ था| 
--------------------------विशा