हर दर्द को दिल से मिटाया नहीं जाता,
कुछ दर्द तो दिल से लगाने के लिए हैं|
खुद को मशरूफ रखने के सारे ये जतन,
बस उसकी यादों को भुलाने के लिए हैं|
---------------विशाल
Monday 30 July 2012
Saturday 28 July 2012
वो पास आते आते हमसे दूर हो गए,
ख्वाब जिन्दगी के चकनाचूर हो गए|
एक दौर में जो हमारे रहम ओ करम पर थे,
कुर्सी मिली तो वही लोग मगरूर हो गए|
इस दौर की दास्तानें भी अजीब ओ गरीब हैं,
कल के मुजरिम आज सब हुजूर हो गए|
खुदगर्जी के चलते जिनको रिसने दिया कभी,
वो घाव अब सब के सब नासूर हो गए|
हम नींव के पत्थर बन कर ही खुश रहे,
ऐसे भी हैं जो बुर्ज के कंगूर हो गए|
कुछ लोग खुद को गला कर भी रह गये गुमनाम,
कुछ भांड नाच गा कर ही मशहूर हो गये|
--------विशाल
ख़्वाबों में सही उससे मुलाकात होती तो होगी,
नज़रों से ही सही कभी बात होती तो होगी |
ये माना कि उससे तेरा मिलना मुश्किल है,
पर हर कदम पर वो साथ होती तो होगी |
नसीब में तेरे तपती लू के थपेड़े ही सही,
कभी तारों भरी चांदनी रात होती तो होगी |
जिन्दगी अगर है एक बाजी शतरंज की,
मुसलसल इसमें शह और मात होती तो होगी |
दिल भलें ही खाली हो गया हो उसका,
पर आँखों से बरसात होती तो होगी |
कोई चले ना चले साथ तेरे इस जहां में,
हर कदम संग ये कायनात होती तो होगी |
----------------विशाल
जाने क्या ढूंढती रहती हैं हरदम आँखे उसकी,
कुछ ना कुछ यक़ीनन उसने खोया तो होगा |
नाम आँखों से लिखा था जो आखिरी ख़त उसको,
पढ़ते हुए अश्कों से उसने भिगोया तो होगा |
खुली पलकों से ख्वाब देखना सब के वश की बात नहीं,
जाहिर है कि वो रात भर सोया तो होगा |
यूँ तो मेरी मौत का ख्वाहिशमंद रहा है वो,
पर दिखावे के लिए ही सही, वो रोया तो होगा |
वही पाते हैं हम जो हमने कभी दिया होता है,
जो काट रहा है, कभी उसने ही बोया तो होगा |
उसी के दम से रोशन है ये बुझता हुआ 'चिराग',
सूखी बाती को उसने कभी तेल में डुबोया तो होगा |
-------------------विशाल
मैं हूँ भी या नहीं, पता ही नहीं मुझे,
पर अभी भी मेरी दास्तान बाकी है |
सब तो छीन लिया दुनिया ने मुझसे,
बस जमीन और आसमान बाकी है |
कैसे छोड़ दूँ अभी इस लड़ाई को मैं,
बरी हुआ हूँ पर इल्जाम बाकी है|
और तो कुछ भी नहीं तेरा पास मेरे,
हाँ, उन लबों का निशान बाकी है |
उनकी गवाहियाँ कसूरवार ठहरा दे मुझे तो क्या ,
मेरे दिल का तो बयान बाकी है |
मैं ना रहा तो भी दुनिया चलती रहेगी,
तेरे लिए अभी पूरा जहान बाकी है|
-------------विशाल
लोग आज सब के सब घबराने लगे हैं,
अब तो अपने ही हमको आजमाने लगे हैं|
कभी बाप की त्योरी भी बेटे को डराती थी,
अब बेटे ही बाप को आँखें दिखाने लगे हैं|
हम वक़्त की रफ़्तार के साथ बहते रहे हैं,
पता ही नहीं कहाँ आ के ठिकाने लगे हैं|
मुजरिमों की हिमाकत तो देखिये जरा,
मुन्सिफों को ही आँखें दिखाने लगे हैं|
मेरी मौत का बेसब्री से इन्तजार है उन्हें,
देखिये ना अभी से फातिहा गाने लगे हैं|
नए दौर में नए रिश्ते बनाने की होड़ में,
रिश्ते खून के सब के सब धुंधलाने लगे हैं|
-----------------विशाल
आज फिर से गुजरा जमाना याद आया,
एक भूला बिसरा सा तराना याद आया |
घर की मुंडेर पर बैठी चिड़ियाँ याद आयीं,
और उनका चहचहाना याद आया|
एक पत्थर से ही तोड़ लेते थे आम हम अमराई में,
फिर से अपना वो निशाना याद आया|
कुछ कह पाने की हिम्मत जुटाना मुश्किल था,
बहानों से उसके घर आना जाना याद आया|
पापा की घूरती आँखों से बचाने के लिए,
माँ का झट से आँचल में छुपाना याद आया|
आज जब फुर्सत में बैठे सोचने कुछ एक पल,
ना जाने क्यों वो बचपन सुहाना याद आया|
इस नयी दुनिया के नए रंगों से वाकिफ नहीं हम,
इसीलिए शायद आज सब कुछ पुराना याद आया|
--------------------विशाल
एक भूला बिसरा सा तराना याद आया |
घर की मुंडेर पर बैठी चिड़ियाँ याद आयीं,
और उनका चहचहाना याद आया|
एक पत्थर से ही तोड़ लेते थे आम हम अमराई में,
फिर से अपना वो निशाना याद आया|
कुछ कह पाने की हिम्मत जुटाना मुश्किल था,
बहानों से उसके घर आना जाना याद आया|
पापा की घूरती आँखों से बचाने के लिए,
माँ का झट से आँचल में छुपाना याद आया|
आज जब फुर्सत में बैठे सोचने कुछ एक पल,
ना जाने क्यों वो बचपन सुहाना याद आया|
इस नयी दुनिया के नए रंगों से वाकिफ नहीं हम,
इसीलिए शायद आज सब कुछ पुराना याद आया|
--------------------विशाल
Friday 27 July 2012
पोखरों तक नहीं पहुंचे, वो समुन्दर की बात करते हैं,
मुझे बेघर करने वाले ही अब घर की बात करते हैं|
भरोसा करें भी तो किस पर, कुछ समझ नहीं आता
दवा देने ही वाले ही अक्सर जहर की बात करते हैं |
जले में नमक छिडकने वाले वही लोग हैं शायद, जो
कफस में बेबस परिंदे के आगे पर की बात करते हैं|
बलात्कार, क़त्ल-ओ गारद, वहशत और दरिंदगी
ये अखबार शायद किसी जानवर की बात करते हैं|
कई बार मारा गया हूँ पर अब तलक जिन्दा हूँ मैं,
मेरे चाहने वाले इसलिए अब मेरे सर की बात करते हैं|
----------------------विशाल
हर बार की तरह रिश्तों की दुहाई देगा,
वो फिर मुझे किसी चौराहे पे ला ही देगा|
पत्थर के शहर में हैं पत्थर के ही हैं लोग,
यहाँ किसी को भला क्या सुनाई देगा|
बिक जाते हैं जहाँ सब ईमान औ धर्म,
वहां मेरे हक में है कौन जो गवाही देगा|
अब तो रीता ही रखा है उसने मुझको,
अब जब देगा तो सीधे रिहाई ही देगा|
जीवन में तो अंधेरों ने पीछा नहीं छोड़ा,
कब्र पर तो 'चिराग' कोई जला ही देगा|
-------------विशाल
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