चलते चलते कई बार ठहर जाने को जी चाहता है,
इस तन्हाई से घबरा कर मर जाने को जी चाहता है।
दिन भर जिन लोगों से बचने के जतन करता हूँ,
शाम होते ही पास उनके घर जाने को जी चाहता है।
खुद की निगाहबानी का अहसास बड़ा सुकूँ देता है,
कभी कभी इसीलिए डर जाने को जी चाहता है।
यूँ तो कभी भी मैंने अपने जीने का तरीका ना देखा,
कुछ रोज से जाने क्यों सँवर जाने को जी चाहता है।
मेरे जाने के बाद भी ये दुनिया मुझको भूल ना पाए,
जाने से पहले कुछ ऐसा कर जाने को जी चाहता है।
---------------------विशाल
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